________________ युवाचार्यश्री ने मेरे द्वारा सम्पादित दसा, कप्प, व्यवहार को देखकर निशीथादि चारों प्रागमों का पूनः सम्पादन करने के लिए सन्देश भेजा था किन्तु बहत लम्बे समय से मेरा स्वास्थ्य अनुकल' न रहने से मैंने श्री तिलोकमुनिजी म. से चारों आगमों का अनुवाद एवं विवेचन लिखने के लिए कहा- आपने उदार हृदय से अनुवाद एवं विवेचन स्वयं की भाषा में लिखा है-साधारण पढ़े लिखे भी इनका स्वाध्याय करके प्रायश्चित्त विधानों को आसानी से समझ सकते हैं। उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी की शारीरिक सेवा में अहर्निश व्यस्त रहते हुए भी उपाचार्य श्री ने निशीथ की भूमिका लिखकर के जो अनुपम श्रुतसेवा की है, उसके लिए सभी सुज्ञ पाठक तथा आगम समिति के सभी कार्यकर्ता हृदय से आभारी हैं। निशीथ आदि चारों आगमों के संशोधन, सम्पादन कार्यों में श्री विनयमुनिजी तथा महासतीजी श्री मुक्तिप्रमाजी आदि का निरन्तर यथेष्ट सहयोग प्राप्त होता रहा / अतः इन सबका मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। अक्षय तृतीया, 2048 -अनुयोग प्रवर्तक मुनि कन्हैयालाल "कमल" आबू पर्वत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org