Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 13
________________ १०३ १०४ १०९ ११० छब्बीसवां कर्मबंध-वेदपद ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध का निरूपण वेदनीयकर्म के वेदन के समय-समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा आयुष्यादि कर्मवेदन के समय कर्मप्रकृतियों के बंध की प्ररूपणा सत्ताईसवां कर्मबंध-वेदपद ज्ञानावरणीयादि कर्मों के वेदन के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों के वेदन का निरूपण अट्ठाईसवां कर्मबंध-वेदपद प्राथमिक प्रथम उद्देशक प्रथम उद्देशक में उल्लिखित ग्यारह द्वार चौवीस दण्डकों में प्रथम सचित्ताहार द्वार नैरयिकों में आहारार्थी आदि द्वितीय से अष्टम द्वार पर्यन्त भवनपतियों के सम्बन्ध में आहारार्थी आदि सात द्वार एकेन्द्रियों में आहारार्थी आदि सात द्वार विकलेन्द्रियों में आहारार्थी आदि सात द्वार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, मनुष्यों, ज्योतिष्कों एवं वाणव्यन्तरों में आहारार्थी आदि सात द्वार वैमानिक देवों में आहारादि सात द्वारों को प्ररूपणा एकेन्द्रियशरीरादिद्वार लोमाहारद्वार मनोभक्षीद्वार द्वितीय उद्देशक द्वितीय उद्देशक के द्वारों की संग्रहणी गाथा प्रथम-आहारद्वार द्वितीय-भव्यद्वार तृतीय-संज्ञीद्वार चतुर्थ-लेश्याद्वार पंचम-दृष्टिद्वार छठा-संयतद्वार सातवाँ-कषायद्वार आठवाँ-ज्ञानद्वार नौवाँ-योगद्वार दसवाँ-उपयोगद्वार ग्यारहवाँ-वेदद्वार ११२ । ११५ ११६ १२२ १२४ १२४ १२७ १२७ १३५ १३७ १३९ १४० १४३ १४३ १४४

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