Book Title: Agam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक देखकर जागृत होती हैं । जब बलदेव गर्भ में आते हैं तो बलदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं । जब मांडलिक राजा गर्भ में आता है तो मांडलिक राजा की माता इन चौदह महास्वप्नों में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागृत होती है।
स्वामिन् ! धारिणी देवी ने इन महास्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है; अत एव स्वामिन् ! धारिणी देवी ने उदार स्वप्न देखा है, यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारी, स्वामिन् ! धारिणी देवी ने स्वप्न देखा है। स्वामिन् ! इससे आपको अर्थलाभ होगा। सुख का लाभ होगा। भोग का लाभ होगा, पुत्र का तथा राज्य का लाभ होगा । इस प्रकार स्वामिन् ! धारिणी देवी पूरे नौ मास व्यतीत होने पर यावत् पुत्र को जन्म देगी । वह पुत्र बाल-वय को पार करके, गुरु की साक्षी मात्र से, अपने ही बुद्धिवैभव से समस्त कलाओं का ज्ञाता होकर, युवावस्था को पार करके संग्राम में शर, आक्रमण करने में वीर और पराक्रमी होगा । विस्तीर्ण और विपल बल वाहनों का स्वामी होगा । राज्य का अधिपति राजा होगा अथवा अपनी आत्मा को भावित करने वाला अनगार होगा । अत एव हे स्वामिन् ! धारिणी देवी ने उदार-स्वप्न देखा है यावत् आरोग्यकारके तुष्टिकारक आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाला स्वप्न देखा है । उस प्रकार कहकर स्वप्नपाठक बार-बार उस स्वप्न की सराहना करने लगे।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा उस स्वप्नपाठकों से इस कथन को सूनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट, तुष्ट एवं आनन्दितहृदय हो गया और हाथ जोड़कर इस प्रकार बोला-देवानुप्रियों ! जो आप कहते हो सो वैसा ही है-इस प्रकार कहकर उस स्वप्न के फल को सम्यक् से स्वीकार करके उन स्वप्नपाठकों का विपुल अशन, पान, खाद्य और वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों से सत्कार करता है, सन्मान करता है । जीविका योग्य प्रीतिदान देकर बिदा करता है।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा सिंहासन से उठा और जहाँ धारिणी देवी थी, वहाँ आया । आकर धारिणी देवी से उस प्रकार बोला-'हे देवानुप्रिये ! स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न कहे हैं, उनमें से तुमने एक महास्वप्न देखा है ।' इत्यादि स्वप्नपाठकों के कथन के अनुसार सब कहता है और बार-बार स्वप्न की अनुमोदना करता है । तत्पश्चात् धारिणी देवी, श्रेणिक राजा का यह कथन सूनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट हुई, यावत् आनन्दितहृदय हुई । उसने उस स्वप्न को सम्यक् प्रकार से अंगीकार किया । अपने निवासगृह में आई । स्नान करके तथा बलिकर्म यावत् विपुल भोग भोगती हुई विचरने लगी। सूत्र - १८
तत्पश्चात् दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल-मेघ का दोहद उत्पन्न हआ-जो माताएं अपने अकाल-मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं । उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण हैं, उनका वैभव सफल है, उन्हें मनुष्य संबंधी जन्म और जीवन का फल प्राप्त हुआ है । आकाश में मेघ उत्पन्न होने पर, क्रमशः वृद्धि प्राप्त होने पर, उन्नति प्राप्त होने पर, बरसने की तैयारी होने पर, गर्जना युक्त होने पर, विद्युत से युक्त होने पर, छोटी-छोटी बरसती हुई बूंदों से युक्त होने पर, मंद-मंद ध्वनि से युक्त होने पर, अग्नि जला कर शुद्ध की हई चाँदी के पतरे के समान, अङ्क रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुन्द पुष्प और चावल के आटे के समान शुक्ल वर्ण वाले, चिकुर नामक रंग, हरचाल के टुकड़े, चम्पा के फूल, सन के फूल, कोरंट-पुष्प, सरसों के फूल और कमल के रज के समान पीत वर्ण वाले, लाख के रस, सरस रक्तवर्ण किशुंक के पुष्प, जासु के पुष्प, लाल रंग के बंधजीवक के पुष्प, उत्तम जाति के हिंगल, सरस कंक, बकरा और खरगोश के रक्त और इन्द्रगोप के समान लाल वर्ण वाले, मयूर, नीलम मणि, नीली गुलिका, तोते के पंख, चाष पक्षी के पंख, भ्रमर के पंख, सासक नामक वृक्ष या प्रियंगुलता, नीलकमलों के समूह, ताजा शिरीष-कुसुम और घास के समान नील वर्ण वाले, उत्तम अंजन, काले भ्रमर या कोयला, रिष्टरत्न, भ्रमरसमूह, भैंस के सींग, काली गोली और कज्जल के समान काले वर्ण वाले,
इस प्रकार पाँचों वर्णों वाले मेघ हों, बिजली चमक रही हो, गर्जना की ध्वनि हो रही हो, विस्तीर्ण आकाश में वायु के कारण चपल बने हुए बादल इधर-उधर चल रहे हों, निर्मल श्रेष्ठ जलधाराओं से गलित, प्रचंड वायु से
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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