Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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फफफफफफफ
answers about sound (shabd). The fifth lesson has information about
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chhadmasth (one who is short of omniscience due to residual karmic bondage). The sixth lesson describes increase and decrease of life-span. The seventh lesson contains description of vibration of matter particles. फ्र The eighth lesson narrates the description of matter given by ascetic Nirgranthi-putra. The ninth lesson has the description of Rajagriha city. The tenth lesson provides the description of the moon in Champa city. २. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था । वण्णओ । तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामे चेइए होत्था । वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
२. उस काल, उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। उस चम्पानगरी के बाहर पूर्णभद्र नाम का
चैत्य था। इनका वर्णन औपपातिक सूत्रानुसार समझें। (एक बार ) वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। यावत् परिषद् भगवान को वन्दन करने और उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए गई, और धर्म श्रवण कर वापस लौट गई।
भगवती
2. During that period of time there was a city called Champa. Description (as in Aupapatik Sutra). Outside Champa city there was a Chaitya (temple complex) called Purnabhadra. Description (of the 卐 Chaitya). (Once ) Bhagavan Mahavir arrived there... and so on up to... फ्र People came out to pay homage and attend the discourse, after which they dispersed.
सूत्र
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विवेचन : चम्पानगरी : तब और अब - औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी का विस्तृत वर्णन मिलता है, तद्नुसार फ प्राचीनकाल में 'चम्पा' ऋद्धियुक्त, शत्रुओं से अपराजित एवं समृद्ध नगरी थी । चम्पानगरी का इतिहास अति प्राचीन है, वहीं पर दधिवाहन राजा की पुत्री चन्दनबाला का जन्म हुआ था । पाण्डवकुलभूषण प्रसिद्ध दानवीर कर्ण ने इसी नगरी को अंगदेश की राजधानी बनाया था। बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी के पाँच कल्याणक इसी नगरी में
हुए थे। महावीर - चरित्र के अनुसार अपने पिता श्रेणिक राजा की मृत्यु के शोक के कारण सम्राट् कोणिक मगध की फ राजधानी राजगृह में रह नहीं सकता था, इस कारण उसने वास्तुशास्त्रियों से परामर्श कर एक विशाल चम्पावृक्ष वाले स्थान को पसंद करके अपनी राजधानी के हेतु नवीन चम्पानगरी बसाई। दशवैकालिक सूत्र के रचयिता आचार्य शय्यंभव सूरि ने राजगृह से आये हुए अपने लघुवयस्क पुत्र मनक को इसी नगरी में दीक्षा दी थी और यहीं दशवैकालिक सूत्र की रचना की थी। इस नगरी के बंद हुए दरवाजों को महासती सुभद्रा ने अपने शील की महिमा फ से अपने कलंक निवारणार्थ कच्चे सूत की चलनी बाँधकर उसके द्वारा कुएँ में से पानी निकाला और तीन दरवाजों पर छींटा देकर उन्हें खोला था। चौथा दरवाजा ज्यों का त्यों बंद रखा था। परन्तु बाद में वि. सं. १३६० में लक्षणावती के हम्मीर और सुलतान समदनी ने शंकरपुर का किला बनाने हेतु उपयोगी पाषाणों के लिए इस दरवाजे को तोड़कर इसके कपाट ले लिये थे। वर्तमान में चम्पानगरी चम्पारन कस्बे के रूप में भागलपुर के निकटवर्ती एक जिला है। (क) जिनप्रभसूरि रचित 'चम्पापुरीकल्प' (ख) हेमचन्द्राचार्य रचित महावीरचरित्र, सर्ग १२, श्लोक १८० से १८९ तक, (ग) आचार्य शय्यंभव सूरि रचित परिशिष्ट पर्व, सर्ग, ५, श्लोक ६८, ८०, ८५ (घ) भगवती सूत्र (टीकानुवाद टिप्पणयुक्त), खण्ड २, पृ. १४४ /
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Bhagavati Sutra (2)
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