Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
இததததத*******************ததததததததததத
இதமிமிததமிமிமிததமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி***தமிழததததி
६. [ प्र.] जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं दिवसे भवति तया गं पच्चत्थिमेणं वि दिवसे भवति ? जया णं पच्चत्थिमेणं दिवसे भवति तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं राई भवति ?
5
[उ. ] हंता, गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं दिवसे जाव राई भवति ।
६. [ प्र. ] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व में दिन होता है, तब क्या पश्चिम में भी दिन होता है ? और जब पश्चिम में दिन होता है, तब क्या जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से उत्तर-दक्षिण दिशा में रात्रि होती है ?
[उ.] गौतम ! हाँ, इसी प्रकार से होता है; अर्थात् जब जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से पूर्व में दिन होता है, तब उत्तर-दक्षिण भाग में रात्रि होती है।
6. [Q.] Bhante ! When it is day on the east of the Meru mountain, is it also day on the west of Meru mountain ? And when there is day on the east of the Meru mountain, is there night on the south and north of the Meru mountain in Jambudveep?
[Ans.] Yes, Gautam ! (It is like that; which means -) When there is day on the east of Meru mountain in Jambudveep, it is night on its north and south.
विवेचन : सूर्य के उदय-अस्त का व्यवहार: यहाँ जो दिशा, विदिशा या समय की दृष्टि से सूर्य का उदय - अस्त बताया गया है, वह सब व्यवहार दर्शकों की दृष्टि की अपेक्षा से बताया है, क्योंकि समग्र भूमण्डल
पर सूर्य के उदय अस्त का समय या दिशा - विदिशा (प्रदेश) नियत नहीं है।
वह क्षेत्र सापेक्ष है। वास्तव में देखा
5 जाए तो सूर्य तो सदैव भूमण्डल पर विद्यमान रहता है, किन्तु जब सूर्य के समक्ष किसी प्रकार की आड़ (ओट या व्यवधान) आ जाती है, तब ( उस समय ) उस देश ( उस दिशा - विदिशा) के लोग उक्त सूर्य को देख नहीं पाते, तब उस देश के लोग इस प्रकार का व्यवहार करते हैं- 'अब सूर्य अस्त हो गया है।' जब सूर्य के सामने फ किसी प्रकार की आड़ नहीं होती, तब उस देश (दिशा - विदिशा) के लोग सूर्य को देख पाते हैं और वे इस 5 प्रकार का व्यवहार करते हैं- 'अब ( इस समय ) सूर्य उदय हो गया है।' एक आचार्य ने कहा है- "सूर्य प्रति समय ज्यों-ज्यों आकाश में आगे गति करता जाता है, त्यों-त्यों निश्चित ही इस तरफ रात्रि होती जाती है। इसलिए सूर्य की गति पर ही उदय अस्त का व्यवहार निर्भर है।" इस प्ररूपणा के अनुसार इस मान्यता का स्वतः निराकरण हो जाता है कि 'सूर्य पश्चिम की ओर के समुद्र में प्रविष्ट होकर पाताल में चला जाता है, फिर पूर्व की ओर के समुद्र पर उदय होता है।'
एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस कैसे ? - जम्बूद्वीप में सूर्य दो होते हैं। जब एक सूर्य मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में होता है, तब दूसरा सूर्य मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में होता है। उस समय मेरु पर्वत की उत्तर और दक्षिण
दिशा में दिन होता है। मेरु पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में रात्रि होती है। जब मेरु की पूर्व और पश्चिम दिशा में 5 दिन होता है, तब उत्तर-दक्षिण दिशा में रात्रि होती है। इसलिए एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस होता है और
दो दिशाओं में रात्रि होती है। विशेष स्पष्टता के लिए मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते सूर्य का संलग्न चित्र देखें ।
Fifth Shatak: First Lesson
f पंचम शतक प्रथम उद्देशक
F
Jain Education International
फ्र
(7)
For Private & Personal Use Only
卐
फफफफ
www.jainelibrary.org