Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 11
________________ प्रस्तुत आगम के प्रथमसंस्करण-प्रकाशन के विशिष्ट अर्थसहयोगी श्रेष्ठिप्रवर, श्रावकवर्य पद्मश्री मोहनमलजी सा. चोरड़िया 'मानव जन्म से नहीं अपितु अपने कर्म से महान् बनता है।' यह उक्ति स्व. महामना सेठ श्रीमान् मोहनमलजी सा. चोरडिया के सम्बन्ध में एकदम खरी उतरती है। आपने तन, मन और धन से देश, समाज व धर्म की सेवा में जो महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, वह जैन समाज के ही नहीं, बल्कि मानव-समाज के इतिहास में एक स्वर्ण-पृष्ठ के रूप में अमर रहेगा। मद्रास शहर की प्रत्येक धार्मिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक गतिविधि से आप गहराई से जुड़े हुए थे और प्रत्येक क्षेत्र में आप हर सम्भव सहयोग देते थे। आपका मार्गदर्शन एवं सहयोग प्राप्त करने के लिए आपके सम्पर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति संतुष्ट होकर ही लौटता था। आपका जन्म २८ अगस्त, १९०२ में नोखा ग्राम (राजस्थान) में सेठ श्रीमान् सिरेमलजी चोरडिया के पुत्र रूप में हुआ। सन् १९१७ में आप श्रीमान् सोहनलालजी के गोद आये और उसी वर्ष आपका विवाह हरसोलाव निवासी श्रीमान् बादलचन्दजी बाफणा की सुपुत्री सद्गुणसम्पन्ना श्रीमती नैनीकँवरबाई के साथ हुआ। तदन्तर आप मद्रास पधारे। श्रीमान् रतनचन्दजी, पारसमलजी, सरदारमलजी, रणजीतमलजी एवं सम्पतमलजी आपके सुपुत्र हैं। अनेक पौत्र-पौत्री एवं प्रपौत्र-प्रपौत्रियों से भरे-पूरे सुखी परिवार से आप सम्पन्न थे। बचपन में ही आपके माता-पिता द्वारा प्रदत्त धार्मिक संस्कारों के फलस्वरूप आपमें सरलता, सहजता सौम्यता, उदारता, सहिष्णुता, नम्रता, विनयशीलता आदि अनेक मानवोचित सद्गुण स्वाभाविक रूप से विद्यमान थे। आपका हृदय सागर-सा विशाल था, जिसमें मानवमात्र के लिये ही नहीं, अपितु प्राणीमात्र के कल्याण की भावना निहित थी। आपकी प्रेरणा, मार्गदर्शन एवं सुयोग्य नेतृत्व में जनकल्याण एवं समाजकल्याण के अनेकों कार्य सम्पन्न हुए, जिनमें आपने तन,मन, धन से पूर्ण सहयोग दिया। उनकी एक झलक यहाँ प्रस्तुत है। योगदान : शिक्षा के क्षेत्र में समाज में व्याप्त शैक्षणिक अभाव को दूर करने एवं समाज के धार्मिक और व्यावहारिक शिक्षण का प्रचार-प्रसार करने की आपकी तीव्र अभिलाषा थी। परिणामस्वरूप सन् १९२६ में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन पाठशाला का शुभारम्भ हुआ। तदुपरान्त व्यावहारिक शिक्षण के प्रचार हेतु जहाँ श्री जैन हिन्दी प्राईमरी स्कूल, अमोलकचन्द गेलड़ा जैन हाई स्कूल, ताराचन्द गेलड़ा जैन हाई स्कूल, श्री गणेशीबाई गेलड़ा जैन गर्ल्स हाई स्कूल, मांगीचन्द भंडारी जैन हाई स्कूल, बोर्डिंग होम एवं जैन महिला विद्यालय आदि शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई, वहाँ आध्यात्मिक एवं धार्मिक ज्ञान के प्रसार हेतु श्री दक्षिण भारत जैन स्वाध्याय संघ का शुभारम्भ हुआ। [८]

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