Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ २९१ २४ शंकितधर्म और अशंकित धर्म की भिन्नता का कथन २५ अज्ञानि पुरुषको अप्राप्नपदार्थ का निरूपण २९२-२९४ २६ अज्ञानियोंके दोषों का निरूपण २९५ २७ अज्ञानवादियों के मतका निरसन २९६-२९७ २८ अज्ञानवादियों का मत दिखाते हुए सूत्रकार म्लेच्छके दृष्टान्त का कथन करते हैं २९८-२९९ २९ दृष्टान्त का कथन करके सिद्धांतका प्रतिपादन ३००-३०२ ३० अज्ञानवादियों के मत के दोषदर्शन ३०३-३०६ ३१ ये अज्ञानवादी अपने को या अन्यको बोधदेने में समर्थ नहीं होने का दृष्टान्त के द्वारा कथन ३०७-३०८ ३२ अज्ञानवादियों के विषयमें अन्य दृष्टान्तका कथन ३३ दृष्टान्त कहकर दार्टान्तिक-सिद्धांतका प्रतिपादन ३१०-३११ ३४ फिरसे अज्ञानवादिके मतका दोषदर्शन ३१२-३१३ ३५ अज्ञानवादियों को होनेवाले अनर्थका निरूपण ३६ एकान्तवादियोंके मत का दोष कथन ३१७-३१९ ३७ क्रियावादियोंके मत का निरूपण ३२०-३२२ ३८ क्रियावादियों के कर्म रहितपना ३२३-३२८ ३९ प्रकारान्तर से कर्मबन्ध का निरूपण ३२९-३३२ ४० कर्मबन्ध के विषयमें पितापुत्र का दृष्टान्त ३३३-३३४ ४१ कर्मबन्ध के विषयमें आईत मतका कथन ३३५-३३९ ४२ ये क्रियावादियों के अनर्थ परंपरा का निरूपण ४३ क्रियावादीयो के मत का अनर्थ दिखाने में नौकाका दृष्टान्त ३४२-३४२ ४४ दृष्टान्त के द्वारा सिद्धान्तका प्रतिपादन ३४३-३४५ तीसरा उद्देशा४५ मिथ्यादृष्टियों के आचारदोषका कथन ३४६-३४८ ४६ आधाकर्मी आदि आहार को लेनेवालेके विषयमें मत्स्य का द्रष्टान्त ३४९-३५१ ४७ दृष्टान्त कहकर सिद्धांत का प्रतिपादन ३५२ ४८ जगत् की उत्पत्ती के विषयमें मतान्तर का निरूपण ३५३-३६९ ४९ देवकृत जगद्वादियों के मतका निरसन ३७०-३८० શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 709