Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुक्रमणिका अनुक्रमाङ्क विषय ।
पृष्ठ प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देश १ मङ्गला चरण
१-१० २ ज्ञानका मङ्गलत्व का प्रतिपादन
११-१५ ३ बन्धके स्वरूपका निरूपण
१६-२१ ४ परिगृह के स्वरूपका निरूपण
२२-२६ ५ प्रकारान्तर से बन्धके स्वरूपका निरूपण
२७-३४ ६ कर्मबन्धसे निवृत्तिका निरूपण
३५-३७ ७ स्वसमयमें प्रतिपादित अर्थका कथन___ करने के पश्चात् परसमयमें प्रतिपादित अर्थ का कथन
३८-४३ ८ चाक मत के स्वरूपका कथन
४४-१४१ ९ वेदान्तियों के एकात्मवादका निरूपण
१४२-१४५ १० अद्वैतवादियों के मत का खंडन ।
१४८-१५० ११ तज्जीव तच्छरीरवादियों के मतका निरूपण
१५१-१५९ १२ पुण्य और पाप के अभावका निरूपण
१६०-१६८ १३ अकारकवादी-सांख्यमतका निरूपण
१६९-२०३ १४ अकारकवादियों के मतका खण्डन
२०४-२०५ १५ पृथिवी आदि भूतों के और आत्माका नित्यत्व
२०६-२११ १६ क्षणिकवादि बौद्धमत का निरूपण
२१२-२२२ १७ चतुर्धातुवादी बौद्धमत का निरूपण
२२३-२३९ १८ चार्याकसे लेकर बौद्धपर्यन्त के अन्यमतवादियों के मतका निष्फलत्वका प्रतिपादन
२४०-२५३ दूसरा उद्देशा १९ मिथ्यादृष्टि नियतवादियों के मतका निरूपण
२५४-२७५ २० नियत्यादि अन्यमतवादियों को मोक्षप्राप्ति का अभाव का कथन २७६-२७९ २१ अज्ञानवादियों के मतका निरूपण में मृगका दृष्टान्त २८०-२८५ २२ पाशमें बंधेहुए मृगकी अवस्थाका निरूपण
२८६ २३ असम्यक् ज्ञान के फलप्राप्तिका निरूपण
२८७-२९०
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧