Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Sthanakvasi Jain Conference

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ प्रमुखता में वल्लभीपुर व्यवस्थित और श्रजैन तत्वों के सम्बन्ध में भी बहुत कुछ मिलता और ये महावीर स्वामी से पहिले के होने के कारण इन सवका काल-निर्णय भी हो पाता । वर्तमान में सूत्रकृतांग आदि जो कुछ उपलब्ध है, उसी के प्रमाण का श्राधार रखना पडता है । सूत्रकृतांग को अन्य अंगो के समान ही सुधर्मा स्वामीने जिनका जन्म ईस्वी सन् ६०७ वर्ष पूर्व माना जाता है, महावीर स्वामी के निर्वारण के पश्चात् अपने शिष्य जम्बूस्वामी के प्रति कहा है । पूर्व प्रथम शताब्दि में पाटली पुत्र में एकत्रित की रक्षा का बड़ा प्रयत्न किया, सन् ४५४ ईस्वी में देवधि क्षमाश्रमण की में जैन संघ एकत्रित हुआ और उसने श्रागमों को पत्रारूढ किये । इस प्रकार वर्तमान में श्रागमों का जो रूप मिलता है वह महावीर स्वामी के बाद लगभग एक हजार वर्ष पश्चात् का है लगभग यही स्थिति प्राचीन बौद्ध और प्राण ग्रन्थों को भी है किन्तु जिस श्रद्धा और सम्मान से प्राचीन ग्रन्थ--- विशेषतः धर्मग्रन्थजनता सुरक्षित रखती है, उसका विचार करने पर उपलब्ध ग्रन्थ भले ही शब्दांश में अपने पूर्वरूप से भिन्न हों परन्तु अपने प्रश में लगभग यथापूर्व ही सुरक्षित है, यह मानना श्रप्रमाण नहीं है । यों सूत्रकृतांग प्राचीन दृष्टि पर प्रकाश डालता है और इसको बौद्ध ब्रह्मजालसुत्त के वर्णन से बहुत पुष्टि मिलती है । इस सूत्र में वर्णित अनेक सिद्धान्त विस्तृत रूप में जान पड़ते हैं और ये अपने विस्तृत रूप में महावीर स्वामी के समय में लोगों में प्रचलित होंगे ऐसा अनुमान होता है । मूल रूप में ये सब वाद अनेकान्त जैन दृष्टि से अपूर्ण सत्य हैं, यह ध्यान में रखना चाहिये और सब से बड़ी बात 1 1 (2) ईस्वी सन् से और और संघ ने जैन- ग्रागम श्रागम स्थिर किये । फिर

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 159