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सुधीनी छे. अने तेओनी संज्वलनवालानी देव गति तथा बाकीना त्रणनी अनुक्रमे. मनुष्य तिथंच अने नरक गति छे. अर्थात् एक-13 आचा
पायो वाला जीवो ए गतिने पामे छे. एम कषायो ते गतिना साधनना हेतुओ कह्या, आ कषायना नाम विगेरे आठ प्रकारे निक्षेपा 15 कह्या. तेने क्या नयवालो शुं इच्छे छे. ते कहे छे.
सूत्रम् ॥२५५॥ नैगम नयवालो सामान्य विशेष रुपपणाथी तथा तेनुं एकगमपणुं नहोवथी तेना अभिप्राय प्रमाणे वधाए निक्षेपा नाम विगेरे || ॥२५५॥
आठे माने छे. अने संग्रहव्यहवार नयवाला कषाय संबंधना अभावथी आदेश अने समुत्पत्ति ए वे निक्षेपाने इच्छता नथी. रुजु सूत्रवालो वर्तमान अर्थने इच्छतो होवाथी आदेश, समुत्पत्ति अने स्थापना निक्षेपाने इच्छतो, नथी शब्द नयवालो नामनो पण कथं| चितभावनी अंदर रहेला भावथी नाम अने भाव, एवा वे निक्षेपानेज इच्छे छे आ प्रमाणे कषायो कर्मना कारणपणे कया. अने ते र कर्म संसार कारण छे. हवे संसार केटला प्रकारनो छे ते बतावे छे. दव्वे खित्ते काले, भवसंसारे अ भवसंसारे । पंचविहो संसारो, जत्थे ते संसरंति जिआ ॥ १८२॥
द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भव, अने भाव, एम पांच प्रकारनो संसार छे, जेमा संसारी जीवो भ्रमण करे छे (नाम स्थापना सुगम | होवाथी नियुक्तिकारे लीधा नथी एम जणाय छे.) द्रव्य संसारमा ज्ञ शरीर भव्य शरीर छोडीने द्रव्य संसाररूप आ संसारज छे. द अने क्षेत्र संसार जे क्षेत्रोमां द्रव्यो आम तेम संसरे (खसे) ते छे. काळ संसार ते जेमा संसारर्नु वर्णन थाय अने नरक विगेरे चार
गतिमा अनुपूर्वीना उदयथी एक भवथी बीजा भवमा जवू, ते भव संसार छे. अने भाव संसार एटले संसृतिनो स्वभाव ते औदयिक
SOSIOCESSIASASCHASIS
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