Book Title: Adhyatmabindu
Author(s): Mitranandvijay, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 43
________________ Jain Education International पृष्ठम् २ ५ ९ ९ १४ १९ २० २३ २४ २४ २४ २४ २९ ४६ पंक्तिः २२ ५ २६ २ २८ २७ १२ १५ २४ ३ ५ 20 21 2 १४ १७ १८ २२ शुद्धिपत्रम् अशुद्धम् स्थाण तह तस्याव्यतिरेक' निरुपाधिगुण चेतनादिति, ओ नियुक्ति पुरस्थित शरीरसम्बन्ध एवं गृह्यन्ते, व्यञ्जनं व्यक्तिः विभावगुणपर्यायः 'नुभूतिलक्षणः । स्वभाव प्रसजन्त्यां परिणामैरव कालिकी 'विकारा For Personal & Private Use Only शुद्धम् "थए कए तह तस्या व्यतिरेक' निरुपाधिकगुण चेतनादिति । ओघनियुक्ति पुरस्थित शरीरसम्बन्धः । एवं गृह्यन्ते । व्यञ्जनं व्यक्तिः । विभावगुणपर्यायः । 'नुभूतिलक्षणः स्वभाव प्रसञ्जन्त्यां परिणामैरेव कालिक निर्विकारा www.jainelibrary.org

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