Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust

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Page 9
________________ स्वरूपी वस्तु है। ज्ञान वस्तुत्व का स्वरूप ज्ञान में ही रहता है। अतः सामान्य विशेष के कारण ही ज्ञान को वस्तु कहते हैं। सभी वस्तुओं की सिद्धि सामान्य विशेष से होती है। प्रथम सामान्य भाव होता है। यदि सामान्य भाव न हो. तो विशेष भाव नहीं हो सकता है। सामान्य विशेष को लिए हुए है। अतः सामान्य के होने पर ही विशेष नाम प्राप्त करता है। जो वस्तु है वह क्रम सहमावी रूप है। गुण की परिणति का क्रम गुण का है। सभी गुण सहभाग क्रम को धारण करते हैं। यदि द्रव्य गुण रूप परिणमन न करे, तो गुण की सिद्धि नहीं हो सकती। वस्तुतः एक ही सत्ता की ऋद्धि सभी गुणों में विस्तृत है। अतः सभी द्रव्य तथा वस्तुएँ शाश्वत हैं । वस्तु का भाव वस्तुत्व है। वस्तुत्व सभी वस्तुओं में व्यापक है। वस्तुतः वस्तु को ज्ञान, ज्ञेय या ज्ञायक कहने पर उसका सर्व प्रकाश एक चैतन्य वस्तु का है। इसके विषय में ही कहा गया है- "ज्ञान की जगनि में जोति की झलक है" (स्वरूपानन्द, पध. ७७) परमात्मा का राज्य - परमात्मा राजा के राज्य में प्रजा अनन्त गुण-शक्ति पर्याय से सम्पन्न है। सभी गुणपुरुष तथा परिणति-नारी अनन्त विलास के द्वारा सुखी हैं। उस राजा के तीन मन्त्री हैं-दर्शन, ज्ञान. चारित्र । फौजदार या सेनापति सम्यक्त्व है तथा कोतवाल परिणाम है। परमात्मा के राज्य में गुणी पुरुष गुणसत्ता के मन्दिर में निवास करते हैं। उसके राज्य में गुण-प्रजा विलास करती है। राजा और चेतनापरिणति रानी का क्या कहना है? दोनों एकमेक हो अतीन्द्रिय विलास करते हैं। वास्तव में परमात्मा राजा का राज्य शाश्वत, अचल है। उसके अनन्त पदाधिकारी हैं जो सम्यक प्रकार से पद के योग्य कार्य करते रहते हैं। दर्शन - देखने मात्र का नाम दर्शन है। अनन्त गुण, द्रव्य तथा पर्याय का अवलोकन होना दर्शन है। दर्शन मन्त्री परमात्मा राजा की सतत सेवा करता है। यदि दर्शन देखने का काम न करे, तो छद्मस्थों (अल्पज्ञों) को ज्ञान कैसे हो सकता है? वस्तुतः परमात्मा का रूप नित्य, निराकार, निर्विकल्प है। सम्पूर्ण चेतना का कारण एक दर्शन गुण है। दर्शन सभी गुणों में बहुत सूक्ष्म है । दर्शन गुण सब को देख-देख कर

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