Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust

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Page 8
________________ की रचना है। इसी प्रकार "उपदेश सिद्धान्तरत्न" मी ८७ सवैयों तथा ४ दोहों में रचित लघुकाय रचना है । अन्त में केवल एक सवैया की आठ पृष्ठों में गद्य में विशद टीका की गई है। यथार्थ में "परमात्मपुराण" एक आध्यात्मिक प्रथमानुयोग की शैली में रचित अनूठी रचना है। हिन्दी साहित्य में इस प्रकार की यह प्रथम तथा अपूर्व रचना है। इस गद्य-रचना में शिव-द्वीप के अखण्ड देश पर राज्य करने वाले परमात्मा राजा का आध्यात्मिक वर्णन किया गया है । निज सत्ता के प्रासाद (महल) में निवास करता हुआ परमात्मा राजा चेतना परिणति रानी के साथ रमण करता हुआ परम अतीन्द्रिय, अबाधित आनन्द को उत्पन्न करता है। __ ससा-स्वरूप - सत्ता अपने स्वरूप को लिए हुए है । सत्ता सब को साधती है। जो मोक्षमार्ग को साधे सो साधु है। स्वपद को साधे सो सत्ता है। द्रव्य पनि मासा द्रव्य को आती है. गुग की सत्ता गुण को साधती है, पर्याय की सत्ता पर्याय को साधती है तथा ज्ञान की सत्ता ज्ञान को, दर्शन की सत्ता दर्शन को, वीर्य की सत्ता वीर्य को, प्रमेयत्व की सत्ता प्रमेयत्व को एवं अनन्त गुणों की सत्ता अनन्त गुणों को साधती है। सत्ता के आधार पर ही उत्पाद, व्यय, भुव हैं। यद्यपि एक द्रव्य में अनन्त गुण कहे गए हैं, किन्तु उन गुणों में सत्ता–भेद नहीं है। अनन्त गुणों का आधार भाव एक है। द्रव्य - गुण, पर्याय की ओर जो ढलता है उसे द्रव्य कहते हैं। द्रवत्व के कारण द्रवीभूत होने पर द्रव्य से परिणाम उत्पन्न होता है। परिणाम के प्रकट होने पर गुण द्रव्य रूप परिणत हो जाता है। द्रव्य जब द्रवित होता है, पर्याय की ओर ढलता है, तब गुण, पर्याय की सिद्धि होती है। द्रव्य पुरुष है, परिणति नारी है। यदि वह द्रव रूप परिणमन न करे, तो द्रव्य नहीं हो सकता। द्रव्य की द्रवता में परिणति कारण है। द्रवता सभी गुणों में है। किसी गुण की परिणति किसी अन्य गुण में नहीं पाई जाती। वस्तु - जिसमें गुण वसते हैं उसे वस्तु कहते हैं । वस्तु सामान्यविशेष रूप है। जानन मात्र ज्ञान सामान्य है. क्योंकि इसमें अन्य भाद नहीं है। किन्तु स्व–पर का जानना यह ज्ञान का विशेष है। आत्मा ज्ञान

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