Book Title: Adhyatma Panch Sangrah Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 7
________________ आध्यात्मिक ज्ञान एवं कवित्व उच्च कोटि का है। यथार्थ में "परमात्मपुराण" गद्य की एक ऐसी अपूर्व रचना है जो हिन्दी में इसके पूर्व नहीं रची गई थी। कवि 'दीप' (दीपचन्द कासलीवाल) ज्ञान का वर्णन करते हुए निम्नांकित भावाभिव्यक्ति करते हैं "ज्ञान अनंतशक्ति स्वसंवेदरूप धरे, लोकालोक का जाननहार अनंतगुण को जाने । सर परजाप,सपीई, सत् प्रमेय, सत् अनंत गुण के अनंत सत जाने, अनंत महिमा निधि-ज्ञान रूप ज्ञान ज्ञानपरिणति नारी ज्ञान सों मिलि परिणति ज्ञान का अंग-अंग मिलन ते ज्ञान का रसास्वाद परिणति ज्ञान की ले ज्ञान परिणति का विलास करे। जानन रूप उपयोग चेतना ज्ञान की परिणति प्रगट करे। जो परिणति नारी का विलास न होता, तो ज्ञान अपने जानन लक्षण को यथारथ न राखि सकता। जैसे अभव्य के ज्ञान है: ज्ञान परिणति नहीं, तात ज्ञान यथारथ न कहिये। ता ज्ञान झानपरिणति को धरे, तब यथास्थ नांव पावै । तातै ज्ञानपरिणति ज्ञान यथारथ प्रभुत्व राखे है। जैसे भली नारी अपने पुरुष के घर का जमाव करे है. तैसे ज्ञान स्वसुखजुक्त घर ज्ञान परिणति करे है। ज्ञानपरिणति ज्ञान के अंग को वेदि-वेदि विलसे है। ज्ञान के संगि सदा ज्ञानपरिणति नारी है। अनंत शक्ति जुगपत सब ईय जानन की ज्ञान में तो है, परि जब ताई ज्ञान की परिणति नारी सों भेंट न भई. जब ताई अनंत शक्ति दबी रही। यह अनंत शक्ति परिणति-नारी ने खोली है। जैसे विशल्या ने लक्ष्मन की शक्ति खोली, तैसे ज्ञानपरिणति नारी ने ज्ञान की शक्ति खोली। ऐसे ज्ञान अपनी परिणति-नारी का विलास तैं अपने प्रभुत्व का स्वामी भया । परिणति ने जब ज्ञान वेद्या वेदता भोग अतेन्द्री भया, तब ज्ञानपरिणति का संभोग झानपुरुष किया, तब दोइ संभोग योग ते आनंद नाम पुत्र भया । तब सब गुण-परिवार ज्ञान में आये सो ज्ञान के आनंद पुत्र भये हरष भया. सबके हरष मंगल भया। (पृ. ४३-४४) इसी प्रकार परमात्म राजा दरसन मन्त्री, ज्ञान मन्त्री, सम्यक्त फौजदार, परिणाम कोटवाल, आदि का सुन्दर चित्रण किया गया है। "ज्ञानदर्पण में कुल १६६ पद्य हैं। अधिकतर रचना सवैया छन्द में निबद्ध है। "स्वरूपानन्द" सवैया तथा दोहा छन्दों में रचित ६५ पद्योंPage Navigation
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