Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 13
________________ कहे जाते हैं । ओसियाजीमें जब आप पहुंचेथे तब वहांभी पूजा, प्रभावना, देवगुरुकी भक्तिके अतिरिक्त एक साल-मकान बंधाकर यात्रालु लोगोंकी कितनीक तकलीफोंको रफा किया।.. __ चरम तीर्थकर-सिद्धार्थनन्दन श्रीमन्महावीर देवकी निर्वाणभूमि श्रीपावापुरीजीमें भी आपकी तर्फसे एक विशाल साल बनी है जिसमें अनेक देशदेशान्तरीय जैन यात्रालु आकर आराम पाते हैं। बीकानेर में विमलनाथजीके मन्दिरमे जो टालियां जदीगई हैं जिनके जरिये मन्दिर देवमन्दिरसा दीख रहा है वहभी आपकी तर्फसे जडाई गई हैं। __ अभी गतवर्षमें सुप्रसिद्ध प्रातःस्मरणीय जैनाचार्य १००८ श्रीमद्विजया. नन्दसूरि (आत्मारामजी) महाराजके शिष्य १०८ श्रीमान् श्रीलक्ष्मी विजयजी महाराजके शिष्य १०८ श्रीहर्षविजयजी महाराजके शिष्य श्रीमद्वल्लभविजयजी महाराजके शिष्यरत्न पंन्यास श्रीसोहनविजयजीके सदुपदेशसे विद्याप्रचारके लिये जो एक भगीरथ फंड हुआ है उसमेंभी आपने रु. २१००० देकर अपनी पूर्ण उदारता प्रकट की है। विमलनाथजीके मन्दिरमें टालियोंके सिवाय आपकी तर्फसे एक बंगलीवेदीभी तयार हुई है जिसमें आप प्रभुप्रतिमाकी स्थापना करना चाहते हैं। __ बीकानेर शहरमें और कलकत्तामें जो जो धर्मकार्य उपस्थित होते हैं उन प्रत्येक कार्योंमें आप अपनी शक्तिका अच्छा सदुपयोग कर रहे हैं। जब कभी किसी मुनिमहाराजका चतुर्मास होता है तो उनके दर्शन वन्दनके लिये आये हुए समानधम्मी लोगोंकी आप जो सेवा उठाते हैं देखकर आत्मा प्रसन्न होजाता है । खास करके ऐसे ऐसे धार्मिक कार्यों में आपके लघुभ्राता श्रीयुत लक्ष्मीचंद्रजी कोचर सहर्ष अधिक लाभ उठाते हैं यहभी आपके एक गांभीर्यका नमूना है । इस पुस्तकके प्रकाशनका लाभभी आपने ही प्राप्त किया है अतः आप धन्य वादके पात्र हैं। शासन देवतासे यही प्रार्थना की जाती है कि आप अपनी जिंदगीमें ऐसे ऐसे अनेक शुभकार्य करके अपने मनुष्य जन्मको सफल करें । इति शुभम् । श्रीआत्मानन्द जैनसभा. अंबाला शहर (पंजाब ). Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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