Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 84
________________ ६६ की है जिसकी दोनों तरफ एक एक खडी हुई मूर्ति है. और भी यहांपर पीतल तथा पाषाणकी मूर्तियां हैं जो सब पीछेकी बनीहुई हैं. मुख्य मन्दिरके चौतरफके छोटे २ जिनालयोंमें अलग २ समयपर अलग २ लोगोंने मूर्तियां स्थापित कीथीं ऐसा उनपरके लेखोंसे पाया जाता है. मंदिरके सन्मुख हस्तिशाला बनी है जिसमें दरवाजेके सामने विमलशाहकी अश्वारूढ पत्थरकी मूर्ति है, जिसपर चूनेकी घुटाई होनेसे उसमें बहुतही भद्दापन आगया है. विमलशाहके सिरपर गोल मुकुट है. और घोडेके पास एक पुरुष लकडीका बना हुआ छत्रलिये हुए खडा है. हस्तिशालामें पत्थरके बने हुए दस हाथी हैं जिनमेंसे ६ वि० सं० १२०५ ( ई० स० ११४९ ) फाल्गुन सुदि १० के दिन नेठक् आनन्दक पृथ्वीपाल धीरक लहरक और मीनक नामक पुरुषोंने बनवाकर यहां रखे थे जिन सबको महामात्य ( बडेमत्री) लिखा है. बाकीके हाथियोंमेंसे एक पंवार ( परमार ) ठाकुर जगदेवने और दूसरा महामात्य धनपालने वि० सं० १२ ३७( ई० स० ११८०) आषाढ सुदि ८ को बनवाया था. एक हाथीके लेखके ऊपर चूना लगजानेसे वह पढा नहीं जा सका और एक महामात्य धवलकने बनवाया था जिस १हमारी रायमें विमलशाहकी यह मूर्ति मन्दिरके साथकी बनीहुई नहीं किन्तु पीछेकी बनी हुई होनी चाहिये क्योंकि यदि उस समयकी बनी हुई होती तो वह ऐसी भद्दी कभी न होती। हस्तिशालाभी पीछेसे बनाई गई हो ऐसा पाया जाता है, क्योंकि वह संगमर्मरकी बनी हुई नहीं है और न उसमें खुदाईका काम है उसके अन्दरके सब हाथीभी पीछेके ही बने हुए हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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