Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ ११३ उसके खुदवाये हुये लेखोंमें जैन कवियोंने उसके गुणोंकी बड़ी प्रशंसा की है। ___ इतिहासकी दृष्टिसे आबू-पर्वतके जैनमंदिरोंमें खुदेहुये लेख बड़े महत्त्वके हैं । उनमें चालुक्य और परमार वंशी राजाओंका विस्तारपूर्वक वर्णन है । ये लेख बड़े २ हैं। इनकी संख्या २०८ है। इनमेंसे ६८ लेख अकेले एकही मंदिरमें हैं । इस मंदिरका नाम है "लूणसिंह वसहिका।" आबूके प्राचीन लेखोंमेंसे कुछ तो भिन्न २ कई पुस्तकोंमें पहिलेभी प्रकाशित हो चुके हैं । पर सब लेख कहीं नहीं छपे । वे सब पहिलीही वार इस पुस्तमें संगृहीत हुये हैं। आबूमेभी गिरिनारकी तरह पूर्वोक्त बंधुद्वय, वस्तुपाल और तेजपाल की तूती बोल रही है । यह दोनों भाई आबूमेंभी अतुल धन खर्च करके मन्दिरोंका निर्माण और मूर्तियोंकी संस्थापना कर गये हैं । इन मंदिरोंकी कारीगरी गज़बकी है। बड़े बड़े इंजीनियर और शिल्पकलाकुशल लोगभी इन्हें देखकर हैरतमें आजाते हैं । इन लेखोंकी कोईकोई कविता बड़ीही हृदयहारिणी है । उसके दो एक उदाहरण लीजिये। तस्यानुजो विजयते विजितेन्द्रियस्य सारखतामृतकृताद्भुतहर्षवर्षः। श्रीवस्तुपाल इति भालतलस्थितानि दौस्थ्याक्षराणि सुकृती कृतिनां विलुम्पन् । __ अर्थात् वस्तुपाल अमृतवर्षी कवि है और विद्वानोंके भालतलपर लिखे गये दुरक्षरोंको मिटानेवाला है। आबु०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132 133 134