Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 132
________________ अन्वयेन विनयेन विद्यया विक्रमेण सुकृतक्रमेण च । कापि कोऽपि न पुमानुपैति मे वस्तुपालसदृशो दृशोः पथि ॥ अर्थात् वंश, विनय, विद्या, विक्रम और पुण्यके संबंधमें वस्तुपालकी बराबरी करनेवाला कोई नहीं । वस्तुपालकी पत्नी ललितादेवी और पुत्र जैत्रसिंहकीभी प्रशंसामें कितनीही उक्तियां हैं । इसीतरह उसके भाई तेजपालकाभी खूब गुणगान किया गया है। मारवाड़में मेड़तानामक नगरसे १४ मीलपर एक गांव है-केकिन्द । वहां पार्श्वनाथके मंदिरमें जो शिलालेख है उसमें राष्ट्रकूट अर्थात् राठौड़वंशके कितनेही राजाओंका वर्णन है । यथा-मालदेव, उदयसिंह और सूरसिंह । यह सब मरुदेशहीके नरेश थे । उदयसिंहके विषयमें लिखा हैराज्ञां समेषामयमेव वृद्धो वाच्यस्तदन्यैरथ वृद्धराजः । यस्पति शाहिविरुदं स दद्यादकब्बरो बब्बरवंशहंसः॥१२॥ अर्थात् बाबरवंशक राजहंस अकबरने यह आज्ञा दी कि उदयसिंहको लोग वृद्धराज कहा करें, क्योंकि वे सब नरेशोंमें वयोवृद्ध हैं । उदयसिंहके बेटे सूरसिंहकी तारीफ़राज्यश्रियां भाजनमिद्धधामा प्रतापनन्दीकृतचण्डधामा । सपत्ननागावलिनाशसिंहः पृथ्वीपती राजति सूरसिंहः ॥१४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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