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तेजपालके वंशका वर्णन अर्णोराजसे लगाकर वीरधवलतककी बघेलराणाओंकी नामावली आबु तथा यहांके परमार राजाओंका वृत्तान्त इस मन्दिरकी प्रशंसा तथा हस्तिशालाका वर्णन आदि हैं। यह (७४) श्लोकोंका एक छोटासा सुन्दर काव्य है.
इसीके पासके दूसरे शिलालेखमें जो बहुधा गद्यमें लिखा है विशेषकर इस मन्दिरके वार्षिकोत्सव आदिकी जो व्यवस्था कीगई थी उसका वर्णन है । इसमें आबूपरके तथा उसके नीचेके अनेक गांवोंके नाम लिखे गये हैं-जहांके महाजनोंने प्रतिवर्ष नियत दिनोंपर यहां उत्सव करना स्वीकार किया था और इसीसे सिरोही राज्यकी उस समयकी उन्नत दशाका बहुत कुछ परिचय मिलता है.
इन लेखोंके अतिरिक्त छोटे २ जिनालयोंमेंसे बहुधा प्रत्येकके द्वारपरभी सुन्दर लेख खुदेहुए हैं. इस मन्दिरको बनवाकर तेजपालने अपना नाम अमर किया इतनाही नहीं किन्तु उसने अपने कुटुंबके अनेक स्त्रीपुरुषोंके नामभी अमर कर दिये । क्योंकि जो छोटे ५२ जिनालय यहांपर बने हैं उनके द्वारपर उसने अपने सम्बन्धियोंके नामके सुन्दर लेख खुदवा दिये हैं प्रत्येक छोटा जिनालय उनमेंसे किसीनकिसीके निमित्त बनवाया गयाथा। मुख्य मन्दिरके द्वारकी दोनों ओर बडी कारीगरीसे बनेहुए दो ताक हैं जिनको लोग देराणी जेठाणीके आलिये कहते हैं और ऐसा प्रसिद्ध करते हैं कि इनमेंसे एक वस्तुपालकी स्त्रीने तथा दूसरा तेजपालकी स्त्रीने
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