Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 124
________________ १०६ श्वेताम्बर । दिगम्बर सम्प्रदायका विशेष दौर दौरा दक्षिण भारतमेंही रहा है और अबभी है । श्वेताम्बर-संप्रदायका अधिक प्रचार पश्चिमी भारत और राजपूतानेमें है । इस पुस्तकमें, इसीसे, अधिकांश श्वेताम्बरसंप्रदायके लेखोंका संग्रह किया गया है, क्योंकि यह सारे लेख पश्चिम भारत और राजपूतानेसेही सम्बंध रखते हैं । जैनोंके प्राचीन लेख तीन प्रकारके हैं (१) पत्थरकी पट्टियोंपर खोदे हुये लेख (२) मूर्तियोंपर खोदे हुये लेख (३) ताम्रपत्रोंपर खोदे हुये लेख इस पुस्तकमें जिन लेखोंका संग्रह है वे पत्थरकी पट्टियों और पत्थरहीकी मूर्तियोंपर उत्कीर्ण लेख हैं । धातुकी मूर्तियोंपरभी हज़ारों लेख पाये जाते हैं, पर वे छोड़ दिये गये हैं। साथही ताम्रपत्रोंपर उत्कीर्ण लेखोंकाभी समावेश नहीं किया गया । यह छोड़ाछोड़ी करनेपरभी लेखोंकी संख्या पांचसौसे ऊपर पहुंच गई है । इनमेंसे कितनेही लेख बहुत बड़े हैं। आजतक यद्यपि सैंकड़ो-किम्बहुना इससेभी अधिकजैनलेख प्रकाशित हो चुके हैं । पेरिस (फ्रांस )के एक फ्रेंच पण्डित, गेरिनाट, ने अकेलेही १९०७ ईखीतकके कोई ८५० लेखोंका संग्रह प्रकाशित किया है । पर उसमें श्वेताम्बर और दिगम्बर, दोनों सम्प्रदायोंके लेखोंका सन्निवेश है । तथापि हज़ारों लेख अभी ऐसे पड़े हुये हैं जो प्रकाशित नहीं हुये । मुनि महाशयने अपनी प्रस्तुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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