Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 126
________________ १०८ संवत् अधिक विश्वसनीय है । सबसे पुराना लेख इस पुस्तकमें नम्बर ३१८ है। उसका प्राप्तिस्थान हस्तिकण्डी और समय विक्रम संवत् ९९६ है । इसीतरह सबसे पिछला लेख नंबर ५५६ है । वह संवत् १९०३ का है और अहमदाबादमें मिला है । इसप्रकार विक्रमकी १० वीं शताब्दीसे लेकर बीसवी शताब्दीके आरंभतकके-कोईएक हज़ार वर्षतकके-लेखोंका संग्रह इस पुस्तकमें है । इससे पाठक, इस संग्रहके महत्त्वका अनुमान अच्छीतरह कर सकेंगे । तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दीके लेखोंकी संख्या औरोंसे अधिक है । उस समय जैनधर्म बड़ी उन्नत दशामें था । अनेक राजा, महाराजा, अमात्य और सेठ साहुकार उस समय इस धर्मके अनुयायी होगये हैं । उन्होंने अनंत मूर्तियों, मंदिरों और प्रासादोंकी संस्थापना की और बहुतोंका जीर्णोद्धारभी किया। ___ इस संग्रहमें सबसे महत्त्वके वे लेख हैं जिनका सम्बंध शत्रुजय तीर्थ, गिरिनार पर्वत, और अबुंदगिरि अर्थात् आबूसे है। __ औरभी कितनेही पुराने नगरों, गांवों और तीर्थों के लेख ऐतिहासिक सामग्रीसे परिलुप्त हैं या उससे सम्पर्क रखते हैं । तथापि उल्लिखित तीनों स्थानोंके लेख महत्तामें सबसे अधिक हैं । मृत्युंजय तीर्थक लेखोंकी संख्या ३८, गिरिनार पर्वतके लेखोंकी २५ और आबूके लेखोंकी २०८ है । इसप्रकार तीन जगहोंके लेखोंकी संख्या २७१ हुई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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