Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 112
________________ ९४ कि जो इन तीर्थोंके खत्त्व-रक्षणनिमित्त लाखों रुपये खर्चते हुयेभी हजारों रुपये खर्च कर इन्हे जगजाहिर करनेमें प्रयत्न नही करते । हरएक संप्रदायके मान्यतीर्थोंके इतिहास स्कूलोंमे पढाये जावें पर जैनियोंके क्यों नहीं ? हरएक संप्रदायके मंदिर मस्जिदोंके फोटो पाठ्य पुस्तकोंमें दाखल करके विद्यार्थियोंको दिखाये जावें और जैन धर्मके अतिशायीस्थानोंकी खबरतक किसीको नहीं! कितना गजब !! __ आज किसीभी संप्रदायवाले मनुष्यको पूछनेसे उसके माने तीर्थकी प्रतिक्रति उसके घरसे मिलसकेगी चाहे वह अमीर हो कि गरीब । हमे इस निबंधको समाप्त करते तकभी कहींसे कोई अच्छा दिलचस्प फोटू आबुतीर्थका नही मिलसका !! ऐसी दशामे १०८ पूज्य प्रवर्तकजी महाराज श्रीमत्कांति विजयजी महाराज' द्वारा एक फोटू भावनगरनिवासी सुश्रावक नेमचंद गिरधर भाईका मेजा मिला है जो उनके उपकारके साथ इस पुस्तकके प्रारंभमें दाखल किया गया है । कोई समय ऐसा था कि, परस्परकी असहिष्णुताके सबबसे एक दूसरोंकी चीजकी कोई श्लाघा नही करता था, परंतु वर्तमान समयमें एक महात्माके उच्च आचरणने एवं उनके पवित्र विचारने लोगोंके कषायकलुषित हृदयोंको स्वच्छ करके उनमें एक दूसरोंके गुणोंको प्रतिबिम्बित करनेकी शक्ति प्रकट कर दी है । जो अन्यमतावलंबी लोग "हस्तिना ताब्यमानोऽपि न गच्छे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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