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इंगलेंडके कुछ विद्यानुरागी विशेषज्ञोंको जिनकी कृपासे इस धर्मके अनुयायियोंके कीर्ति-कलापकी खोजकी ओर भारतवर्षके साक्षर जनोंका ध्यान आकृष्ट हुवा । यदि ये विदेशी विद्वान् जैनोंके धर्म-ग्रंथों तथा जैन मंदिरों आदिकी आलोचना न करते, यदि ये उनके कुछ ग्रंथोंका प्रकाशन न करते, और यदि ये जैनोंके प्राचीन लेखोंकी महत्ता न प्रकट करते तो हम लोग शायद आज भी पूर्ववतही अज्ञानके अंधकारमें ही डूबे रहते। ___ पश्चिमी देशोंके पण्डितोंकी बदौलतही अपने देशके जैन-विद्वानोंको अपना घर ढूंढनेकी बहुत कुछ प्रेरणा हुई। धीरे २ उनकी यह प्रेरणा ज़ोर पकड़ती गई । जैसे २ उन्हें अपने मंदिरोंके पुराने पुस्तकालयोंमें प्राचीन पुस्तकें मिलती गई तैसेही तैसे उनका उत्साह बढ़ता गया । फल यह हुवा कि किसी २ जैनेतर पण्डितनेभी जैनोंके ग्रंथ-भाण्डार टटोलने आरंभ किये । इस प्रकार अनेक प्राचीन पुस्तकें प्रकाशित होगई । इधर, भारतवर्ष में ही, कुछ विदेशी विद्वानोंनेभी जैनियोंके ग्रंथों और प्राचीन लेखोंके पुनरुद्धारके लिये कमर कसी । उनकी इस प्रवृत्ति और परिश्रमसेभी जैन-साहित्यका कुछ २ पुनरुज्जीवन हुवा । अब तो इस काममें कितनेही जैन विद्वान् जुट गये हैं और एकके बाद एक प्राचीन ग्रंथ प्रकाशित करते चले जा रहे हैं। __ जैन धर्मावलम्बियोंमें सैंकड़ों साधु-महात्मा और सैंकड़ो, नहीं हजारों विद्वानोंने ग्रंथरचना की है। उनकी
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