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तो हिसाबही नहीं । उनकी गिनती तो शायद लाखोंतक पहुंचे । पर वे इस काममें भी अपने साहित्य-प्रेमको नहीं भूले । मंदिरोंमें इन लोगोंने बड़े २ लेख और प्रशस्तियां खुदवा दी हैं । उनमेंसे कोई कोई लेख इतने बड़े हैं कि उन्हें छोटे मोटे खण्ड-काव्यही कहना चाहिये । यहांतक कि मर्तियोंतकमें उनके प्रतिष्ठापकों और निर्माताओंके नामनिर्देश आदिके सूचक छोटे २ लेख पाये जाते हैं।
यदि इन सबका संग्रह प्रकाशित किया जाय तो शायद महाभारतके सदृश एक बहुत बड़ा ग्रंथ होजाय । मंदिरों और मूर्तियोंके यह प्राचीन लेख इतिहासकी दृष्टि से बड़ेही महत्त्वके हैं । इनमें उस समयके राजाओं, राजकुमारों, मत्रियों, बादशाहों, शाहजादों आदिकाभी, सन्-संवत् समेत उल्लेख है और निर्माताओं तथा उद्धारकोंकी भी वंशावली आदि है। इसके सिवा जैनसंघों और जैनाचार्यों आदिकी वंशपरम्पराके साथ औरभी कितनीही बातोंका वर्णन है । जैनोंके कोई कोई तीर्थ ऐसे हैं जहां इस प्रकारके प्राचीन लेख अधिकतासे पाये जाते हैं । पर तीर्थोंहीमें नहीं, छोटे छोटे ग्रामोंतक के मंदिरोंमें प्राचीन लेख देखे जाते हैं। इन लेखोंमें जैन साधुओंके कार्यकलापका भी वर्णन मिलता है । किस साधु या किस मुनिने कौनसा ग्रंथ बनाया और कौनसा धर्म-वर्द्धक कार्य किया, ये बातेंभी अनेक लेखोंमें निर्दिष्ट हैं । अकबर इत्यादि मुगल-बादशाहोंसे जैन-धर्मको कितनी सहायता पहुंची, इसकाभी उल्लेख कई लेखोंमें है।
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