Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 113
________________ जैनमंदिरम्" इस दुराग्रहके पोषक थे, वह और उनके नेता तक आज जैनधर्मकी जैनधर्मके सिद्धान्तोंकी अनन्य भक्तिसे उपासना और श्लाघा कर रहे हैं। - भारतके सिरमोर महात्मा गांधीजीने गतवर्ष कार्तिक मासके एक व्याख्यानमें फरमाया था कि-"मेरे धार्मिक संस्कारोंके सुधारनेमे जैनधर्मके एक महान् विद्वान् कारणभूत हैं जिनको लोग "शताऽवधानी श्रीमद् राजचंद्रजी" के नामसे पहचानते हैं । उनके सहवाससे मेरे मनपर अहिंसा धर्मकी गहरी असर पडी है।" पंजाबकेसरी स्वार्थत्यागी लाला लाजपत रायजीने कुछ अरसा पहले एक लेख अंग्रेजीमें लिखकर यह जाहिर किया था कि "जैनोंकी अहिंसाने जगत्को कायर-नपुंसक बना दिया है। लोग शस्त्र नहीं उठा सकते, और लड नही सकते, लोग इस अहिंसाके इतने वशीभूत होगये हैं कि उनको अपनी शक्तिका अपनी मर्दानगीका भान तक नहीं रहा है ! इस जैनियोंकी दयाने जैनियोंकी मानी अदम तशकुदने जगत्को मिट्टीमें मिला दिया है"। __ मगर वलिहारी है समयकी और उच्चात्माके साहचर्यकी, कि-जिसके प्रभावसे उक्त सिद्धान्तके उखाडनेवाले लालाजी उसी सिद्धान्तकी जडोंको पातालतक पहुंचा रहे हैं। महाकवी रवीन्द्रनाथ ठाकुरने भगवान् महावीरखामीकी इन शब्दोंमें तारीफ की है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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