Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ पूर्वकालमें यज्ञके लिये असंख्य पशुओंकी हिंसा होतीथी। इसके प्रमाण मेघदूतकाव्य तथा औरभी अनेक ग्रंथोंसे मिलते हैं। रंतीदेवनामक राजाने यज्ञ किया था उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआथा कि नदीका जल खूनसे रक्त होगया था । उसी समयसे उस नदीका नाम चर्मण्वती प्रसिद्ध है। पशुवधसे स्वर्ग मिलता है-इस विषयमें उक्त कथा साक्षी है ! परंतु इस घोर हिंसाका ब्राह्मणधर्मसे विदाई ले जानेका श्रेय (पुण्य) जैनधर्मके हिस्सेमें है। ब्राह्मणधर्ममे दूसरी त्रुटि यह है कि चारों वर्णों अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, तथा शूद्रोंको समान अधिकार प्राप्त नहीं था। यज्ञयागादि कर्म केवल ब्राह्मणही करते थे । क्षत्रिय और वैश्योंको यह अधिकार नहीं था । और शूद्र बेचारे तो ऐसे बहुतसे कार्योंमें अभागे थे। इसप्रकार मुक्ति प्राप्त करनेकी चारों वर्षों में एकसी छुट्टी नहीं थी। जैनधर्मने इस त्रुटिको पूर्ण किया है" । ___ आबुजैनमंदिरोंके निर्माताओंमे इस वक्त दोनों व्यक्तियोंके नाम प्रसिद्ध हैं । एक तो विमलशाह मंत्री, और दूसरे नंबरमे वस्तुपाल और तेजपाल । विमलशाह मंत्रीके लिये गुजरात में एक ऐसी दंतकथा चलती है कि उसने ३३६ मंदिर बनवाये थे । जिनमेंसे सिर्फ पांच मंदिर कुंभारियाजीमें विद्यमान हैं । यह स्थल आधु आबु. ७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134