Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 116
________________ पर्वतके पास रहे हुए अंबाजी नामक प्रसिद्ध स्थानके पास करीबन डेढ माईलके फासलेपर है। वस्तुपाल तेजपालके बनवाये मंदिर शत्रुजय-गिरनारसाचोर-पाटण-पावागड चांपानेर आदि स्थलोंमे थे और हैं। कहा जाता है कि इन भाग्यवानोंने अपनी हकूमतके समयमें तीस अरब तिहत्तर क्रोड बत्तीस लाख और सात हजार रुपये धर्मकार्यों में खर्चे थे। दूसरी बात एक और विचारनेकी है कि गुणज्ञता मनुष्यका जरूरी भूषण है "नाऽगुणी गुणिनं वेत्ति, गुणी गुणिषु मत्सरी । सुना जाता है कि जिसवक्त आबुतीर्थपर वस्तुपाल तेजपालने मंदिर बनवाने शुरु किये तब शोभनदेव नामक मिस्तरीको इस कामके तयार करनेकी आज्ञा और प्रेरणा हुई । शोभनदेवने २००० मनुष्योंको साथमे लगाकर कार्य करना शुरु किया । उन सबको तनखाह देनेका कार्य तेजपालके सालेके हाथ दिया गया । जब उसने देखा कि मासिक हजारों रुपैये मजदूरी दी जाती है। लाखों रुपयोंका सामान मंगवाया जाता है परंतु काम तो कुछभी नहीं होता। कारीगर खातेपीते और मौज करते हैं । उसको यह सब अनुचित मालूम हुआ । तब उसने उनकी शिकायतका पत्र धोलके वस्तुपाल तेजपालको लिखा । जवाब आया कि तुमको शोभनदेवके और उनके साथियोंके छिद्र देखनेके वास्ते ही वहां नहीं मेजा गया । तुमारा अधिकार पैसा देनेका है सो तुम दिये जाओ । काम वह करें न करें उनका अखतियार है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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