Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ सौहार्दके श्रोत वहने लगे हैं । ऐसे साम्यवाद और मध्यस्थवादके समयमे कोईभी व्यक्ति स्वधर्मगत उत्तम वस्तुको दिखाए तो लोग उसकी कदर करते हैं । बुद्धधर्मका फैलाव हिन्दुस्थानमें नहीं, तो भी उनके जीवनचरित्र हिन्दुस्थानके साहित्य प्रेमियोंने लिखे । बुद्धदेव की मूर्तियां आजके राजा महाराजा शेठ शाहुकार बनवा रहे हैं । गुजरातके साहित्यप्रेमी महाराजा सयाजी रावने अभी थोडेही वर्षों में कई रुपये खर्च कर एक भव्य मनोहर मूर्ति बनवाकर खास एक नये बागीचेमे एक दर्शनीय वेदिकापर स्थापन करवाई है, जिसे हजारों मनुष्य आनंदकी दृष्टिसे देखते हैं। ___ अजमेरमें रायबाहादूर पंडित गौरीशंकरजी ओझाने हमारे गुरु महाराजको सरकारसे संगृहीत प्राचीन वस्तुएँ दिखाते हुए एक शिलालेखका परिचय करा कर कहा था कि, यह शिलालेख महावीर प्रभुके निर्वाणसे सिर्फ ८० वर्षे पीछेका है । आजतक जितने शिलालेख मिल सके हैं उन सबमें यह जैनलेख अति प्राचीन है। ___ सारांश इतनाही है कि, जिस किसी तत्त्वज्ञको जो कोई प्रामाणिक वस्तु हाथ आजावे वह आदरपूर्वक उसको ग्रहण करता है । और निष्पक्षपात वृत्तिसे उसको प्रकाशित भी करता है । परंतु अपनी वस्तुके गुण दूसरोंके कानतक पहुंचाने यह तो हमारा ही फरज है। इसीलिये हमें उससेभी अधिकतर दुख है उन जैन नेताओंकी संकुचित दृष्टिपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134