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ओरिआ-अचलगढसे दो माइल उत्तरमें ओरिआ गांव है जहांपर कनखल नामक तीर्थस्थान है । यहांके शिवालयका जिसको कोटेश्वर (कनखलेश्वर कहते ) हैं वि० सं० १२६५ (ई० स० १२०८ ) में दुर्वासाऋषिके शिष्य केदारऋषिनामक साधुने जीर्णोद्धार करया था उससमय आबूका राजा परमार धारावर्ष था जो गुजरातके सोलंकीराजा भीमदेव (दूसरे) का सामंत था ऐसा यहांके लेखसे जो वि० सं० १२६५ (ई० स० १२०८ ) वैशाखसुदि १५ का है पाया जाता है। __ यहांपर महावीर स्वामीका जैनमन्दिरभी है जिसमें मुख्य मूर्ति उक्त तीर्थकरकी है और उसकी एक और पार्श्वनाथकी
और दूसरी ओर शांतिनाथकी मूर्ति है । ओरिआमें एक डाक बंगलाभी है। ___ गुरुशिखर-ओरिआसे तीन माइलपर गुरु शिखरनामक
आबूका सबसे ऊंचा शिखर है जिसपर दत्तात्रेय (गुरुदत्तात्रेय )के चरणचिन्ह बने हैं जिनको यहांके लोग पगल्यां कहते हैं उनके दर्शनार्थ बहुतसे यात्री प्रतिवर्ष जाते हैं। यहांपर एक बडा घंट लटक रहा है जिसपर वि० सं० १४६८ ई० स० १४११ का लेख है । इस ऊंचे स्थानपरसे बहुत दूरदूरके स्थान नजर आते हैं और देखनेवालेको अपूर्व आनन्द प्राप्त होता है । यहांका रास्ता बहुतही विकट और बडी चढाईवाला है।
गोमुख (वशिष्ठ) आबूके बाजारसे अनुमान १३ माइलदक्षिणमें जानेपर हनुमानका मंदिर आता है जहांसे करीब
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