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बाणसे बींधडालता था जैसा कि पाटनारायणके लेखमें उसके विषयमें लिखा मिलता है । इस मंदाकिनीके तटके निकट सिरोहीके महाराव मानसिंहका मन्दिर है जो एक परमार राजपूतके हाथसे आबूपर मारेगये और यहांपर दग्ध किये गये थे। यह शिवमन्दिर उनकी माता धारबाइने वि० सं० १६३४ ( ई० स० १५७७) में बनवाया था इसमें मानसिंहकी मूर्ति पांच राणियोंसहित शिवकी आराधना करती हुई खडी है। ये पांचो राणियां उनके साथ सती हुई होंगी।
इस मन्दिरसे थोडी दूरपर शांतिनाथका जैनमन्दिर है इसको जैनलोग गुजरातके सोलंकी राजा कुमारपालका बनवाया हुआ बतलाते हैं । इसमें तीन मूर्तियां हैं जिनमेंसे एकपर वि० सं० १३०२ (ई० स० १२४५) का लेख है ।
अचलेश्वरके मन्दिरसे थोडी दूर जानेपर अचलगढके पहाडके ऊपर चढनेका मार्ग है इस पहाडपर गढ बना हुआ है जिसको अचलगढ कहते हैं। गणेशपोलके पाससे यहांकी चढ़ाई शुरू होती है, मार्गमें लक्ष्मीनारायणका मन्दिर और उसके आगे फिर कुंथुनाथका जैनमन्दिर आता है जिसमें उक्त तीर्थकरकी पीतलकी मूर्ति है जो वि० सं० १५२७ (ई० स० १४७०) में बनी थी। यहांपर एक पुरानी धर्मशाला तथा महाजनोंके थोडेसे घरभी हैं। यहांसे फिर ऊपर चढनेपर पहाडके शिखरके निकट बडी धर्मशाला तथा पार्श्वतीर्थकल्पमें कुमारपालका आबुपर एक जिनमंदिर बनवाना लिखा है।
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