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अपने अपने खर्चसे बनवाया था और महाराज शांतिविजयकी बनाईहुई जैनतीर्थ गाइड नामक पुस्तकमेंभी ऐसाही लिखा है जो स्वीकार करने योग्य नहीं है । क्योंकि ये दोनोंआले (ताक) वस्तुपालने अपनी दूसरी स्त्री सुहडादेवीके श्रेयके निमित्त बनवाये थे । सुहडादेवी पत्तन (पाटन )के रहनेवाले मोढ जातिके महाजन ठाकुर (ठक्कुर) जाल्हणके पुत्र ठक्कुर आसाकी पुत्री थी ऐसा उनपर खुदेहुए लेखोंसे पाया जाता है । इस समय गुजरातमें पोरवाड और मोढ जातिके महाजनोंमें परस्पर विवाह नहीं होता परन्तु इन *लेखोंसे पाया जाता है कि उस समय उनमें परस्पर विवाह होताथा.
इस मन्दिरकी हस्तिशालामें बडी कारीगरीसे बनाई हुई संगमर्मरकी १० हथनियां एक पंक्तिमें खडी हैं जिनपर चंडप, चंडप्रसाद, सोमसिंह, अश्वराज, लूणिग, मल्लदेव, वस्तु
___ * इन दोनों ताकोंपर एकही आशयके ( मूर्तियोंके नाम अलग अलग होंगे ) लेख खुदेहुए हैं। जिनमें से एककी नकल नीचे लिखी जाती है:___ ॐ संवत् १२९० वर्षे वैशाख वदि १४ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय चण्डप चण्डप्रसाद महं श्री सोमान्वये महं श्री आसराजसुत महं श्रीतेजःपालेन श्रीमत्पत्तनवास्तव्यमोढज्ञातीय ठ. जाल्हणसुत ठ. आससुतायाः ठकुराज्ञी सन्तोषा कुक्षिसंभूताया महं श्रीतेजःपालद्वितीयभार्या महं श्री सुहडादेव्याः श्रेयोथे.......... यहांसे आगेका हिस्सा टूट गया है परंतु दूसरे ताकके लेखमे वह इसतरह है "एतत्रिगदेवकुलिका-खत्तकं श्रीअजितनाथबिम्बं च कारितं" इस लेखमें जाल्हण और आसको ठ० ( ठकुर ) लिखा है जिसका कारण यह अनुमान किया जाता है कि वह जागीरदार हों दुसरे लेखोंमे वस्तुपालके पिता आसराज वगैरहकोभी ठ० (ठाकुर) लिखा है. राजपूतानेमे अब. तक जागीरदार चारणकायस्थ आदिको लोग ठाकुर कहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com