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हर एक जीवकों सुखकी अभिलाषा है, दुःखकों कोई नही चाहता, परन्तु संसारमें एक ऐसा भयानक स्थान है कि, जहां आंखके पलकारे जितनाभी सुख नहीं। और दुःख इतना है कि, जिसकों कहते देवताओंके सहस्रों वर्ष व्यतीत होजावें परन्तु उन घोर पीडाओंका स्वरूप वर्णन नहीं किया जा सके । उस रौद्रस्थानका नाम नरक है।
क्षेत्रकी परस्परकी परमाधार्मिक देवोंकी की हई वेदनाओंकों सहते हुए जीवकों असंख्यवर्ष बीतजाते हैं तब सिर्फ एक भव नरकका खतम होता है, दश बातोंकी तकलीफ वहां हमेशां जारी रहती है।
अत्यन्तशीत १ अत्यन्तगरमी २ अत्यन्तही भूख ३ अत्यन्तही तृषा ४ खुजली बेशुमार ५ सदा परतंत्र ६ ज्वरकी सततपीडा ७ दाहकी क्षणभर शान्ति नही ८ भय ९
और शोक १० सदास्थाई । ऐसी अनिष्टगति कि जिसका नाम सुनकर हृदय घबराता है उत्तम जीवोंकों चाहिये कि, उसकी प्राप्तिके कारणोंसें सर्वथा बचते रहें । __ आगमेशीभद्र विमलने हाथ जोडकर पूछा-साहिब! इस अनिष्टगतिमें जीव किस किस कामसें जाते हैं ।
गुरुमहाराजने कहा चार बातें ऐसी है जिनसें जीवकों खभ्रके दुःख सहने पड़ते हैं
महा आरंभके करनेसें १, महापरिग्रहकी रुचिसें २, मांसाहारके करनेसे ३, और पंचेन्द्रिय जीवका घात करनेसे ४॥
विमलराज इस बातकों सुनकर कांप उठे और दुःखित
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