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धर्मचुस्त और क्रियारुचिवंत थे, आप सिर्फ श्रद्धामात्रसे या वचनमात्रसेही जैनधर्मके उपासक नहीं थे, बलकि आपने जैनधर्मके वास्ते अपने तनमन और धनको कुरबान करदिया था। . आप १२ व्रतधारी शुद्ध श्रावक थे, आपने पंचमी तप,वीसस्थानकतप, और चतुर्दशी तपको निरतिचार पूरण किया था । __ वस्तुपालकी ललितादेवी और सौख्यलतां दो स्त्रियें थी। ललितादेवीने नवकार तपकी आराधना की थी। और सौख्यलता ने नवकार मंत्रका कोटि जाप किया था।
१ नवकार मंत्रके ६८ अक्षर हैं उनकी आराधनाकी विधि यह है कि"नमोअरिहंताणं" इस आद्यपदके सात अक्षर हैं, सो सात अक्षरोंके प्रमाणमें लगातार सात उपवास करनेसे पहले पदकी आराधना होती है । "नमो सिद्धाणं" इस दूसरे पदके पांच अक्षरोंके प्रमाणमें पांच उपवास करनेसे दूसरे पदकी आराधना होती हैं । गर्ज-दो महीने और १६ दिनमे यह तप पूरा होता है, उसमे ६८ उपवास और ८ दिन पारणेके आते हैं । इस प्रन्थके लिखनेके समय परमोपकारी गुरु महाराज श्रीमद्वल्लभविजयजी महाराजकी छत्रछायामे रहकर तपस्वी श्रीगुणविजयजी इस तपको कररहे हैं । इसी परम उपकारी की सेवामे रहकर तपस्वीजी गुणविजयजी ने वि. सं. १९७४ के साल राजनगर अमदाबादमे सिद्धि तप किया था, इतनाही नही बल्कि इस तपस्वी मुनिने आजतक ६ वार यह तप किया है। , २ आदमी हमेशह टेकपूर्वक कार्य करे तो "टीपे टीपे सरोवर भराय" इस कहावतके अनुसार बहुत कुछ काम करसकता है। जगद्गुरु विजयहीरसूरिजीके पध्धर आचार्य श्री "विजयसेनसूरिजी" ने साढे तीन क्रोड नवकार गिनेथे। वर्तमान कालमे काठियावाडके लखतर गामके रहीस राज्य कारभारीफलचंद दीवानने राज्यकार्यमेसे थोडी थोडी फुरसद निकालकर नवकार महामंत्रका जाप शुरु रखा । आखीर हिसाव लिननेपर मालूम हुआ कि फूलसंद माईने अपनीजिन्दगीमें (८१) गब नवकार लिने हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com