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बुद्धि विमलने अंबिका माताका आराधन करना आरंभकिया अंबिका साक्षात् सामने आई । विमलराजने पंचाङ्ग प्रणाम किया । देवीने कहा मैं तुमपर तुष्टमान हुं यथोचित वर मांगो ।
विमलदेवने कहा- माता ! यदि तुम तुष्ट हो तो मुझे जिनचैत्यके बनाने उचित सहायता दो । और पुत्रकी भिक्षा दो देवी ने कहा तुमारा इतना पुण्य नही कि - तुमको इच्छित दोनो वस्तुएं मिले । एक वस्तु मांगो । मंत्रीने अपनी धर्मपत्निकी अनुमति पूछी तो उसने खुशीसे यह ही सलाह दी कि - जिनमंदिरही कराओ । अंबिका मातासे जगहकी याचना की तो — देवीने कहा बकुल और चंपककी छाया जिस जगह पडती हो वहां की भूमि खोदनेसे बावन ५२ लाख सोनैये निकलेंगे । विमलने उस स्थानको खुदवाया । ठीक उतना ही धन तो निकला परंतु ब्राह्मणोने बडी जिद पकडी । उनका कहना यह था कि, आजतक यह तीर्थ जैनोंके हाथमे नही है, इसलिये हम नई रसम शुरु नही करने देंगे । राजाने अंबिका माताकों पूछा । अंबिकाने कहा इस तीर्थ पर चिरकालसे जिन बिम्बोका अस्तित्व है । प्रातःकाल कुंकुमके साथियेवाली जमीनको खोदना वहांसे श्रीऋषभदेव स्वामी की प्रतिमा निकलेगी । वैसाही हुआ । परंतु फिभी उन्होने अपना कदाग्रह न छोडा । अब उन्होने यह दुच्चर आगे की कि, मानलिया यह तीर्थ जैनोंकाभी है परंतु इस जमीनपर तो हमारी मालिकी है । हम मुंह मांगा दाम
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