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छोटे और बडे, गरीब और अमीर, सबके साथ वह अच्छी तरहसें वर्तने लगे। __ थोडे समयके बाद ज्योतिष शास्त्रादि विद्याद्वारा अतीत अनागत वर्तमान कालके जानकार नरचन्द्रसूरि वहां पधारे । उन महात्माओंके पधारनेसें सर्व नागरिकोंकों अनहद हर्ष हुआ, विशेषतः वस्तुपाल आदिकों इस महामुनिराजके समागमसे बड़ा लाभ यह हुआ कि-उनका मन दुःखसे मुक्त होकर धर्ममें स्थिर होगया ।
नरचन्द्रसूरिजी निमित्त शास्त्रमे बडे प्रवीण थे । उन्होंने उन भाग्यवानोंका भावि महोदय जानकर श्रीसिद्धाचलजीकी यात्रा करनेका, अर्थात्-श्रीशत्रुञ्जय महातीर्थक संघ निकालनेका उपदेश दिया ।
अमात्य संघ लेकर पालीताणे गये । आचार्य महाराजके सतत परिचयसे उनकी धर्मभावना दिन प्रतिदिन खूब दृढ और उमदा स्थिर होने लगी, साहचर्य अच्छा हो, या बुरा, अपना फल जरूर दिखाता है। __जब वह लौटकर पीछे आये तब गुर्जरपति वीरधवलने उनको अपने मंत्रीपदपर प्रतिष्ठित कर लिया। __अनेक इतिहासकारोंका मत है कि-"वनराजके पिता जयशिखरीके मारनेवाले कन्नोजके राजा भूवडने गुजरातकी राजधानी-जयशिखरीके मरनेके बाद अपनी लडकी मिल्लणदेवीकी शादीके वक्त उसे उसके दायजेमें देदीथी। मिल्लणदेवी ताजिंदगी गुजरातकी आमदनी खाती
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