Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 70
________________ मान न गया। उसने वस्तुपालको कहलाया कि तुझे मैं अच्छीतरह जानता हूं, तुंभी मेराही भाई बनिया है, मेरे सुभटोंकी लाल आंख होते ही तेरी नशाबाजी उतर जायगी। इस तरहके उसके बकवादको सुनकर मंत्रीने अपने सैनिकों को साथ लिया और उसके घरको जा घेरा । __ यहभी जानलेना जरूरी है कि-वस्तुपाल अपने पुण्यबलसे बलिष्ठ होकरभी साथमे साधन पूरा रखता था। १८०० सुभट ऐसे सूरवीर इनके अंगकी रक्षा करनेवाले थे कि जो देवतासेभी यथा तथा पीछे नहीं हटते थे । १४०० सामान्य रजपूत जो कि-दूसरे दर्जेके योद्धे होकरभी विजयको प्राप्त कर सकते थे । इसके अलावा ५००० नामी घोडे, २००० उत्कृष्ट गतिवाले पवनवेग घोडे, ३०० दूध देनेवाली गौएँ, २००० बलद, हजारों ऊंट और हजारों दूध देनेवाली भैंसे थीं। १०००० तो उनके नौकर चाकर थे। तीनसौ हाथी जो उनको राजाओंकी तर्फसे भेटमे मिले हुए थे। उनका मन्तव्य था कि राज्यकर्मचारी गृहस्थका जीवन पैसेपर निर्भर है, इस वास्ते वह ४ क्रोड अशर्फियें और आठकोड मुद्राएँ हमेशह अपनेपास जमा रखते थे। उनकी मान्यता थी कि "पुण्यं पुण्येन वर्धते" इसीही वास्ते वह दीन दुःखियोंको अपने कुटुंबके समान पालते थे। दीन, दुःखी, आर्त, और गुणाधिकोंके उद्धास्के लिये वह प्रतिदिन १०००० द्रम्म खर्चा करते थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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