Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 61
________________ भला किसकी ताकात थी कि इनकी आज्ञाको न मानता ?, कुछ खास खास राज्य हितचिन्तकोंकी मरजीसे मंत्री वस्तुपालने उसको पकडकर कैद किया, और अन्त्यमे ११०० अशरफियां दंड लेकर छोडदिया। __ इस बनावसें वह बहुत कुछ उछलना कूदना चाहता था परन्तु-"यस्य पुण्यं बलं तस्य" तपते हुए मध्याह्नके सूर्यके सामने नजर टिकानेकी शक्ति किसकी थी। "शिष्टस्य पालनम्" इस वाक्यको उन्होंने सोमेश्वर भहमें चरितार्थ किया था। सोमेश्वर-वीरधवलके गृहस्थगुरु ब्राह्मण थे वस्तुपालतेजपाल राजाके हितचिन्तक-सच्चे सलाहकार, प्रजाके एकान्त हितवत्सल, थे, इसवास्ते सोमेश्वर उनपर फिदा फिदा हुआ हुआ था । थोडेसे अन्तरके धर्मभेदके खटकेकोभी महामंत्रियोंने अपनी मध्यस्थवृत्ति से दूर कर दिया था। बस सोमेश्वर और दोनो मंत्रियोंने संसारमे त्रिमूर्तिरूपको धारण कर लिया था। ॥दिग्विजय ॥ वस्तुपालके बाप दादा इसी कामको करते आए थे कि जिसपर आज इनका अधिकार था, इसलिये राज्यके कार्योंको सिर्फ दोही नहीं किन्तु हजार नेत्रोंसे देखनेका हजारों कानोंसे सुननेका उनका फर्ज था। ___ जब उन्होने देखा कि खजानेमेही बहुत कमी है तो उनको एक चिन्ता उत्पन्न हुई, उन्होने सोचा कि-"कोष एव महीशानां परमं बलमुच्यते" धनसंपत्तिके लाभका उपाय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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