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हृदयसें बोले-कृपालु ! इन कामोंका करनेवालाभी इस आपत्तिसें बचसके ऐसा कोई उपाय है ? ।
गुरु बोले-हां है। विमलका चित्त हर्षित हुआ, उनका चेहरा टहकने लगा और बोला-कृपालु ! मुझ पामरपर कृपा लाकर फरमाओ, मेरे जैसा पापात्मा कैसे पावन हो सक्ता है ? क्योंकि मैंने अभिमानके वशसें लक्ष्मीकी लालसासें अनेक पाप किये हैं, राजव्यापारमें और उसमेंभी दंडनायक (सेनापति) का तो धंदाही पापका है।
गुरु बोले-महाभाग! सुन । संसारमें सभी जीव अज्ञानावस्था धर्ममार्गसें विपरीत चलते हुए अन्धसमान हैं, परन्तु ज्ञानचक्षुओंके मिलनेपर तो पापकार्यमें प्रवृत्ति न करनी चा. हिये । अगर गृहस्थाश्रमके प्रतिबंधसें राजव्यापारकी परतंत्रतासें अथवा धर्मरक्षा राज्यपालनके वास्ते कोइ हिंसादि कार्य करनाभी पडे तो अन्तःकरणसे डरकर करना उचित है कि, जिससे घोर निकाचित बन्ध न पडे। ___ अज्ञानवशसें किये पापकर्मोंका पश्चात्ताप करनेसें और जिन चैत्य जिन प्रतिमा आदि उत्तम काममें धन खर्चनेसे जगदुपकारी परमात्माकी एक चित्तसें भक्ति करनेसें गुरुसेवा शास्त्रश्रवण तपश्चर्या दान दया आदि कार्योंमें लक्ष्मीका सब्धय करनेसें शासनकी प्रभावना करनेसें जीव पापोंसे मुक्त होता है।
गुरुमहाराजकी तत्त्वरूप धर्म देशनाको सुनकर विम
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