Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 19
________________ GALO वन्दे वीरमानन्दम् ॥ आबुके जैनमन्दिरोंके निर्माता ॥ ॥पीठबन्धः॥ गुजरातके प्रसिद्ध शहर पाटणमें जब राजा भीमदेव राज्य करते थे तब उनके पास 'वीर' नामके एक अच्छे कुशल मंत्री रहते थे, वह राजनीति-प्रजाधर्म खामीसेवा-राज्यरक्षा-धर्मसाधन-इन कार्यों में बड़े ही सिद्धहस्त थे। जिस समय की घटना का यह उल्लेख है उसवक्त गुजरातभरमें पवित्र जैनधर्मका बड़ा जोर था, राजकीय न होनेपरभी राजकीय जैसा बर्ताव सर्वत्र इस धर्मका मालूम देता था, इसमें कारण केई थे, जिन मे ३ कारण मुख्य थे___ (१) एक तो पाटण के आबाद करनेवाले महाराजाधिराज वनराज पर जैनाचार्य श्रीशीलगुणसूरिजीका असीम उपकार था, पाटणके वसानेके समय एक विशाल उन्नत दिव्य जिनमन्दिर बंधाकर उसमें 'पंचासर' गामसें लाकर श्रीपाश्वनाथस्वामीकी प्रतिमा विराजमान की गईथी, और वनराज चावडाने आराधकरूपसें अपनी मूर्ति भी उस मन्दिरमें रखवाईथी, जो कि पाटणमें पंचासरा पार्श्वनाथजीके उस मन्दिरमें अमीतक भी कायम है, इसलिये जो जो राजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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