Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 38
________________ "कमलोन्मूलनहेतोर्नेतव्यः किं सुरेन्द्रगजः?" मैं मानता हूँ कि अगर त्रिकटु मात्रसे रोगोपशान्ति होजाती हो तो धन्वन्तरीको क्यों बुलाना, मृगारिबालसे ही हरिण भागते हों तो वनराज केशरीकों क्यों उठाना। ___ इस आक्षेपकों सुनकर सिन्धुराजके क्रोध और मानकी सीमा न रही, वह दान्तोंके नीचे होठोंको चबाता हुआ सिरपर शमशेरको घुमाता हुआ भबूकता हुआ बोला-विमल! अगर ऐसा है तो आजा सामने । आज तेरे इस अपस्मारको दूर करनेके लिये यह मेरी तीक्ष्ण तलवार ही महौषध है। विमलने कहा-अरे क्षणमात्रके सिन्धनायक! ज्यादा बोलनेसे क्या फायदा है ? अगर कुछ शक्ति है तो अवसर आया है हुश्यार होकर शस्त्र पकड लो, बाकी तो "नीचो वदति न कुरुते" यह कहावत इसवक्त तुमारेमेही सत्य मालूम दे रही है । बस अपने आपको नीच शब्दसे पुकारा जाता हुआ देखकर सिन्धुपति आगकी तरह लाल होगया और खंजर उठाकर कुमारके सामने दौड आया। ___ कुमारने एक बाण मारकर शत्रुके मुकुटको उडादिया और दूसरेसे हाथीका मुंह मोडदिया । फौरन ही आप उछल कर राजाके हाथीपर जा चढा और बडी चतुराईके साथ शत्रुकी मुस्कें बांधकर उसे हाथीसे नीचे गिरादिया । पार्श्ववर्ति सेवकोने हाथोहाथ उठाकर राजाको अपने लश्करमे पहुंचाया और गुर्जरपतिकी आज्ञासे उसको काष्ठके पिंजरेमे डालदिया। गुर्जरपति आनन्द मनाते हुए गुजरात चले आये । प्रजागणने बड़े समारोहसे सन्मान दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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