Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 41
________________ उसके पकडनेकी आज्ञा करनी, ऐसा करनेसे केसरीके सामने जाके विना मोतके यह मराही समझो, बस "विनौषधं गतो व्याधिः ।" अगर भाग्यवशात् इस आपत्तिसेभी यह बचगया तो भीमसेनके समान बलिष्ठ अपने मल्ल (पहलवान ) के साथ इसकी कुस्ती करानी, पहलवान एक क्षणभरमे इसकी हड्डियोंको चूर देगा। ___ फरज करो इस आपत्तिसेभी यह कभी बचगया तो "इनके पूर्वजोंसे ५६ कोड टंक प्रमाण राज्यका लेना है इस बातका आरोप देकर इसको पकडके कैद करना और घर बार इसका लूट लेना"। ____राजाधिराज गुर्जरपति अपने नित्य भक्त, एकान्त हितचिन्तक सच्चे सेवकवास्ते ऐसा अनुचित विचार करे यह उसके लिये सर्वथा अघटित था परन्तु किया क्या जाय "राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा" "विनाशकाले विपरीतबुद्धिः" यह तो सदाका नियम है, अस्तु केसरी सिंह पिंजरेसे निकालदिया गया, राजाकी आज्ञासे एक हरिण या बकरेकी तरह पुण्याढ्य विमलने उसको पकड लिया। जिसमल्लको राजा बलिष्ठ समझता था उसे सभासमक्ष विमलने ऐसा पछाडां कि वह मुशकिलसे जान लेके छूटा। ५६ क्रोड टंक लेनेका और उसके अभावमे विमलको कैद करनेका हुकम होनेपर विमलकुमारने अपनी निर्दोषता और वीरताका परिचय कराते हुए राजाके सामने प्रतिज्ञा की कि, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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