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राजा और प्रजा सबका पूरा प्रेम था. इसके समयमें धुरंधर विद्वान् खपरसमय ज्ञाता वादी-जीपक शास्त्रसंपन्न श्रीमान् द्रोणाचार्य, सूराचार्य, जिनेश्वरसूरि, वगैरह अनेक आचार्य पाटणमें रहते थे। और द्रोणाचार्य तोभीमराजके संसारपक्षकेभी संबंधी थे, सूराचार्य-द्रोणाचार्यजीके भाई सामन्तसिंह के लडके थे, जिनेश्वरसूरिजीसें तो भीमदेवने बाल्यावस्थामें शाखाभ्यासभी किया था, इसलिये इन तीनोंही आचार्योंको राजा भीम बडी सन्मानकी दृष्टि से देखते थे।
वीरमंत्रीका 'विमलकुमार' नाम एक लडका था, यह लडका अच्छा विनीत मातापिताका भक्त देवगुरुका उपासक आर अति मर्यादाशील था, बुद्धिबल इसका बड़ा प्रौढ चमत्कारी था, हरएक विषयकों यह एक या दो दफा देखने सुननेसेंही सीखजाता था। इसका रूप तो ऐसा सुन्दर था कि जब यह घोडेपर सवार होकर नगर और नगरके बाहिर घूमनेको निकलता तब हजारों स्त्रीपुरुष इसकी मोहिनी. मूर्तिको प्रेमसें देखतेथे । स्त्रीवर्गको तो यह जादु जैसा मालूम पडता था।
॥विकट घटना॥ विमलकुमारकी उमर अभी छोटी ही थी कि विमल के पिता वीरमंत्रीने वैराग्य में आकर संसार छोड जैनमनियोंके पास दीक्षा ले ली थी।
एकसमयका जिकर है कि विमल कुमार घोडेपर चढा हुआ बाजारमें जा रहा था, घोडा मध्यमगतिसे दौडरहा था । किसी
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