Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 239
________________ Aधी इमाणवका गणहा णव काल उवउ AAA प्रतिक्रमणा यग्गिते सव्वं राई पढंति, वेरत्तिएणवि अणुवहतेण सुपडियंग्गितेण पाभानियमसुद्धे उद्दिटुं दिवसतोऽपि पढंति, कालचउके अग्गह कालग्रह -----ध्ययने णकारणा इमे-पादोसियं न गण्हति असिवादिकारणतो ण सुज्झइ वा, अड्डरत्तियं न गेहति कारणतो न सुज्झति वा, पादोसिएम ॥२३७॥ वा सुपडियग्गितेण पढ़तित्ति न गेहति. वेरतियं कारणो ण गिण्हंति ण सुज्झति वा, पादोसियअड्डरत्तिएण वा पढ़तित्ति ण गेहंति, पाभातियं ण गेण्हंति कारणतो न सुज्झति वा । इदाणिं पाभातियकालग्गहणविहिं पत्तेयं भणामि-पाभाइय॥१४९५॥ पाभाइयंमि काले गहणविधी पट्टवणविही य । तत्थ गहणविधी इमाणवका०॥ भा. २२४ ॥ दिवसतो सज्झायविरहिताण देसादिकहासंभववज्जणटुं मेधावितराण य विभंगवज्जणट्ठाए, एवं सव्वेसिमणुग्गहणट्ठा णव कालग्गहणकाला पाभातिए अणुकण्णाता, अतो णवकालग्गहणवेलाहिं सेसाहिं पाभातियकालग्गाही कालस्स पडिकमउ, सेसावि तवेलं उवउत्ता चिट्ठति, कालस्स 18 तं वेलं पडिक्कमंति वा ण वा, एगो णियमा ण पडिकमति, जदि छीतरुतादाहिं ण सुज्झिहिति तो सो चेव वेरत्तिओ पडिजग्गितो होहितित्ति, सोवि पडिकतेसु गुरुस्स कालं निवेदेत्ता अणुदिते मूरिए कालस्स पडिकमते, जदि घेप्पमाणेण णव वारा उवहतो कालो तो णज्जति जहा धुवमसज्झाइयमस्थिति ण करेंति सज्झायं, णववारग्गहणविधी इमो 'संचिक्खि तिणि छीतरुणाई' ति, अस्य व्याख्या-एक० ॥ २२५ भा. ॥ एगस्स गिण्हतो छीतरुतादीहिं हते संचिक्वतित्ति ग्रहणा विरमतीत्यर्थः, पुणो गि-18 हति, एवं तिण्णि वारा, ततो परं अण्णो अणमि थंडिले विणि वारा, तस्सवि उवहते अण्णो अण्णमि थीडले, तिण्डं असतीए ॥२३७॥ दोण्णि जणा नववाराओ पूरंति, दोण्हवि असतीए एक्को चेव नवबाराओ पूरेति, थंडिलेसुवि अववादो, दोसु वा एकमि वा गण्हति । 'परवयणे खरमादि' ति, अस्य व्याख्या-चोदति चोयग आह-जदि रुदितमणिद्वे कालवहो ततो खरेण रडिते -% Aॐ

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