Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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प्रत्या
ख्यान
चूर्णिः
॥२७३॥
अतित्थापचक्खाणं जहा अतित्थ बंभणाण एवमादि पडिसेह पञ्चक्खाणं णत्थि मे जं तुमं मग्गसि । भावपच्चक्खाणं दुविहं- सुतपच्चक्खाणं णोसुतपच्चक्खाणं च, जं तं सुतपच्चक्खाणं तं दुविह-पुव्वसुत० गोपुव्वसुतपच्चक्खाणं, पुव्वसुतप० णाम पुव्वं णवमं जं तं णोपुव्वसुतपच्चक्खाणं तं अणेगविहं, तं० आतुरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाणं, इमं पच्चक्खाणज्झयणं जं तं सुतपच्चक्खाणं, तं दुविहं- मूलगुणपच्चक्खाणं उत्तरगुणपच्चक्खाणं च जं तं मूलगुणपच्चक्खाणं तं दुविहं सब्वमूलगुणपच्चक्खाणं देसमूलगुणपच्चक्खाणं च सव्वमूल०पंच महव्यता, देसगुणमूलपच्चक्खाणं च पंचं अणुव्वता, उत्तरगुणपच्चक्खाणं दुविहं सव्युत्तरगुणपच्चक्खाणं देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं च सव्वुत्तरगुणप。दसावहं अणागतमतिक्कतं ० ।। १६६१ ॥ एतं दसविहं, देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं सत्तविहं तिनि गुणव्वताणि चत्तारि सिक्खावताणि, एवं सत्तविहं, अहवा उत्तरगुणपच्चक्खाणं दुविहं- इत्तिरियं आवकाहियं, जथा णियंटितं तं दुक्खमादिसुवि जं पडिसेवति, सावगाणं च तिन्नि गुणव्वतानि आवकहिताणि साधूणं केति अभिग्गहविसेसा सावगाणं च तिनि गुणव्वतानि आवकहिताणि, साधुणं केति अभिग्गहविसेसा सावगाणं चत्तारि सिक्खावताणि इत्तिरियाणित्ति, तत्थ जं तं सव्वमूलगुण पच्चक्खाणं तत्थिमा गाथा पाणवह मुसावाए० || २४३ || मा० ॥ समणाणं जे मूलगुणा ते सव्वमूलगुणपच्चक्खा णंति भण्णति, तंजथा सव्वाओ पाणातिवाताओ वेरमणं, तिविहं तिविहेणंति जोगत्तियं करणत्तियं च गहितं दस्थ तिविहंति न करेमि न कारवैमि करंतंपि अण्णं ण समणुजाणामि, तिविहंति मणसा वयसा कायसा । एवं पंचसु महव्वतेसु भणितव्वं ।
इदाणि देसमूलगुणा एते चैव देसओ पच्चक्खाति, तं सावयाणं पंचविहं इमं धूलाओ पाणातिवायाओ वेरमणं जाव इच्छापरिमाणं । तत्थ ताव सावगधम्मस्स विधिं वोच्छामि, ते पुण सावगा दुविहा- साभिग्गहा य णिरभिग्गहा य० ।। १६५४ ॥
प्रत्याख्यानस्य भेदाः
॥ २७३॥
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