Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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प्रत्याख्यानचूर्णिः
सप्तम भांगापभोगमानं.
॥२९६॥
BARSACREATERESA
ताहे तुच्छाओ ओसहीतो परिहरति, जहा मुग्गसिंगातो चणगादिसिंगातो इच्चादि,तत्थ दोसे सिंगरखातो उदाहरणं, खेत्तरक्ख- द तो मुग्गसिंगाओ खाति, राया णिग्गतो, खायंत पेच्छति, ततो पडिनियत्तो तहवि खायति, वलयाणं कूडं कयं, रमा पोट्टे फला| वियं कत्तियातो खत्तियातो होज्जा,णवरि फेणो,किंचिविणत्थि,अहवा केसिंचि केति अतियारा जहासंभवं जोज्जा, अभिग्गहविससेण | वा होज्जा। इमं च अत्रं-भोयणतो असणे अणंतकायं अल्लगादि मंसादि,पाणमि रसगवसमज्जादि,खादिमे उडुम्बरवडपिप्परिपिलक्खुमादीसु महुमादिसु सादिमे सत्तितो वयं,जो पुण अभिग्गहविसेसेणं उवभोगपरिभोगविहिपारमाणं करेति सो उव्वलणियावणविहिपरिमाणं करेति,एवं दंतवणविहे य फलविहे य अभंगणतल्लविहे य,उव्वलणविहे य एसि मज्जणजलवत्थवि० विलेवणविही आभरण| विहे पुप्फविहे धूवविहे,भोयणविहिपरिमाणं करेमाणो भिज्जाविहि परिहीखज्जगविही सूयविही चोप्पडविही माहुरगविही परिजेमणग| विही पाणियविही सागविही एवमादिविहि महुमांसविहीपरिमाणं करंति, अवसेसे पच्चक्खामित्ति । कम्मे अकम्मो ण तरति | जीविउं ताहे सावज्जाणि परिहरउ बहुसावज्जाणि वा, तत्थ पन्नरस कम्मा ण समातरियव्वा, इंगाले दाहऊण विक्किणति, तत्थ | छक्कायाण वधो, तन्न वट्टति, अहवा लोहकारादि १ वणकम्मं जो वणं किणति, पच्छा रुक्खे छिदिऊण जीवति तेण मुल्लेणं, एवं
पं(ख)डिगादीवि पडिसिद्धा भवंति २ सागडिगनेणं जीवति तत्थ एवं वहादी दोसा ३ भाडगकम्मं एस णं भंडीवक्खरेण भाडएणं का वहति परायं, अनाणं वा भाडएणं सगडबलरवमादि ४ फोडितो उक्खणणं, हलेणवि भूमी फोडिज्जति ५ दंतवाणिज्जे पुलिदादाणं मोल्लं देति पुव्वं चेव दन्ते देहित्ति,पच्छा ते मारेंति अचिरत्ति सो वाणियतो एहितित्ति, एवं मग्गे रणे संखाणं जीवति,एवं
चमरादीणं,ण वदृति,पुवाणीतं किणंतिविश्लक्खावाणिज्जेवि एस चेव गमगो,तत्थ किर किमिगाहोंति,किमिया किं(ण)रुधिरस्स वा
RREARRESS
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