Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 268
________________ ★ा साः कायोत्सर्गा ध्ययन ॥२६६॥ RASHISHIKARA आलोएतव्वं, ताहे पडिकमिज्जति, चाउम्मासिए एगो उपसग्गदेवताए काउस्मग्गो कीरति, अब्भाहओ पभाते आवासए कते चातुम्मासियसंवत्सरिएसु पंचकल्लाणगं गेहंति, पुब्बगहिता अभिग्गहा णिवेदतब्बा, जदि ण संमं अणुपालिता तो कूजितककराइतस्स काउस्सग्गो कीरति, पुणरवि अण्णे गेण्हितव्वा, णिरभिग्गहेणं किर ण वट्टति अच्छितुं, संवच्छरिए य आवासए कते पज्जोसवणाकप्पो कड्डिज्जति, पुधिं चेव अणागतं पंचरत्तं सब्बसाधूणं सुर्णिताणं कडिज्जति कहिज्जति यत्ति । एते ताव वेलाणियमेण |भणिता काउस्सग्गा, इमे अणियता, तत्थ दारगाथा--भत्ते पाणे०॥२३४॥ गमणं गामादिसु आगमणं ततो चेव, भत्तस्स जत्थल | वच्चति जदि ण ताव देसकालो ताहे पडिकमित्ता अच्छति, ततो पडियागतो पुणोवि पडिकमति, एवं पाणस्सवि, सयणं संथारओ वसही वा, आसणगं पीढगादि, एतेसिं मग्गतो गतो एतं पडिक्खेज्ज, अरहंतघरं गतो साधूणं च वसहिं गतो, अट्ठमिचउद्दसीसु अरहंता साधुणो य वंदेतव्या, उच्चारविओसग्गे पासवणवियोसग्गे दोसुवि जदिवि हत्थमेवं गंतूणं वोसिरति तोवि पडिक्कमति, अह मत्तए ताहे जो विगिंचति सो पडिक्कमति, सेसएसु जदि हत्थसतं नियत्तणस्स बाहिं वा तो पडिकमति, अह अंतो ण पडिक्कमति, एतेसु पणुवीसं उस्सासा, गमणागमणेत्ति गतं ॥ विहारेत्ति असज्झाए अण्णत्थ सज्झायणिमित्तं गतस्स पणुवीस उस्सासा ॥ इदाणिं सुत्तेत्ति, उद्देससमुद्देसे सत्तावीसं अणुण्णवणियाए, सुत्ते उद्दिढे जो काउस्सग्गो समुद्दिढे अणुण्णवणियाए, तेसु सचावासं उस्सासा अच्छितूणं सयं चेव उस्सारति जदि असढो, सढस्स आयरिया उस्सारेंति, जाव आयरिओ न उस्सारेति ताव सुर्य झायति, आयंबिलविसज्जणे विगयविसज्जणे य सत्तावीसं. उवस्सयदेवयाए य सत्तावीस, कालग्गहणे पडवणे य असणाए पडिकमणे अट्ट उस्सासा, आदिग्गहणा कज्जणिमित्तं गच्छंतो अवक्खलितो अढ उस्सासे काउस्सग्गो कातब्बो, ताहे गंमति, जदि -RARIA ॥२६६॥ %

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