Book Title: Aavashyak Sutram Uttar Bhag
Author(s): Bhadrabahuswami, Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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ध्ययनं
कायोत्सर्ग
॥२६९॥
| उडे लंबावेइ काउस्सग्गे ठिओ, वारणो हत्थी, अण्णे भणंति-वाणरो मक्कडो, सो तहा उद्वे चालेत्ता अणुप्पेहेति १८ अहवा वारुणी सुरा जहा बुडबुडेति अणुप्पेहितो १९ एवमादी दोसे परिहोजा। णाभी करतल कोप्पर उस्मगे पारियमि थुती॥णाभित्ति फल सभणाभीओ हेट्ठा चोलपट्टो कातब्बो, करतलत्ति हेट्ठा लंबंतकरतलहिं ठतितब्बो कोप्परहिं धारेतब्बो, उस्सग्गे पारिते णमोटातीय अरहंताणन्ति थुती कातब्बत्ति।
दाहरणानि कीसत्ति कस्स पुण काउस्सग्गो विराधितो न भवति ?, वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समदरसी । देहेर | अप्पडिबद्धो काउस्सग्गो हवति सुद्धो ॥६॥ तत्थ पुण इमाओ आलंबणगाथाओ-णस्थि भयं मरणसम जम्मेण समं न विज्जती दुक्खं । जमणमरणायाहं छिंद ममत्तिं सरीरंमि ॥ १ ॥ अण्णं इमं सरीरं अण्णो जीवोत्ति एवकतबुद्धी। दुक्खपरिकेसरि छिंद ममत्तिं सरीरातो ॥ १६४९ ॥ जावइया किर दुक्खा संसारे जे मए समणुभूता । एत्तो दुव्विसहतरा णरएम अणोवमा दुक्खा ।। १६५० ॥ तम्हा तुणिम्ममेणं मुणिणा उवलद्धदेहसारेणं। काउस्सग्गो कम्मक्खयहाए उ कातब्वो ॥१६५१।। इदाणिं फलं, एवंगुणसंपण्णं काउस्सग्गं करेमाणस्स एहियं फलं पारत्तियं च, एहिते उदाहरणं सुभद्दा, कह?, चपाए जिणदत्तस्स धूता, सा सुभद्दा रूविणी तच्चंनियगसड्डेण दिट्ठा, अज्झविवण्णो मग्गति, अभिग्गहितमिच्छादिवित्ति ण लभति, साहुसीवं गतो, धम्म पुच्छति, कहिते कवडसावगधम्म पगहितो, उवगतो से सम्भावो, आलोएतिमए दारियानिमित्तं कवडं आरद्धं, अण्णाणि अणुब्धताणि देह, दिण्णाणि, लोगप्पगासो सावगो जातो, कालंतरणं वरगा पट्ठविता, सम्मद्दिट्ठित्ति दिण्णा, कतविवाहा विसज्जिता, जुतकं से घरं कतं, तच्चणिएसु भत्ती ण करेतित्ति सासुणणंदाओ पदुट्ठाओ, भत्ता-18
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