Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 250
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहार सूत्रम् नवम उद्देशकः १४५२ (A) ववहारे उद्देसम्मि, नवमए जत्तिया भवे साला । तासि परिपिंडियाणं, साहारणवज्जिए गहणं ॥ ३७०६ ।। व्यवहारे नवमे उद्देशके यावत्यः शाला: शालासूत्राणि भवन्ति विद्यन्ते तासां सर्वासां परिपिण्डितानामयं तात्पर्यार्थ:- यत्र साधारणम् अविभक्तं क्रयाणकं तत्र प्रतिषेधः, साधारणवर्जिते तु ग्रहणम्॥ ३७०६ ॥ सम्प्रति साधारणशब्द-शालाशब्दव्याख्यानार्थमाहसाहारण सामन्नं, अविभत्तमछिन्नसंथडेगर्ल्ड। सालत्ति आवण त्ति य, पणियगिहं चेव एगटुं॥ ३७०७॥ साधारणं सामान्यमविभक्तमच्छिन्नं संस्तृतमिति एकार्थम्, एते सर्वेऽपि शब्दा | एकार्थिका इत्यर्थः । शाला इति वा आपण इति वा पणितगृहमिति वा एकार्थम् ॥ ३७०७॥ साहारणा उ साला, दव्वे मीसम्मि आवणे भंडे। साहारणऽवक्कपउत्ते, छिन्नं वोच्छं अच्छिन्नं वा ॥ ३७०८ ॥ गाथा ३७०६-३७१२ साधारणसालादिषु कल्प्याकल्प्यम् १४५२ (A) For Private and Personal Use Only

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