Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री
व्यवहारसूत्रम् नवम उद्देशकः
१४७६ (A)
महुरेणं सत्तऽन्ने, भावित्ता उल्लणादिणा । दहिगादीण भावित्ता, ताहेव सत्तसत्तए ॥ ३७८५॥ अत्रादिशब्दादन्येषां यूषप्रकाराणां परिग्रहः। व्याख्यातप्रायम्॥ ३७८५ ॥ साम्प्रतमुपसंहारमाहएवमेसा उ खुड्डीया, पडिमा होइ समाणिया । भोच्चाऽऽरुहंते चोद्देणं, अभोच्चा सोलसेण तु ॥ ३७८६॥
एवमेषा क्षुल्लिका मोकप्रतिमा भवति। सा च भुक्त्वा आरोहता प्रतिपद्यमानेन चतुर्दशकेन समानीता समाप्तिं नीता भवति, अभुक्त्वा प्रतिपद्यमानेन षोडशकेन।आरुहंते इत्यत्र सप्तमी तृतीयार्थे प्रतिपत्तव्या ॥ ३७८६ ।।
सम्प्रति महतीं मोकप्रतिमां व्याख्यातुमाहएमेव महल्ली वि हु, अट्ठारसमेण नवरि निट्ठाति परिहारो अट्ठ दिवसा, न हु रोगि बलिस्स वा एसा ॥ ३७८७॥
सूत्र ४३-४४
गाथा
७३७८५-३७८९
दत्तिस्वरूपादिः
|१४७६ (A)
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315