Book Title: Vyavahar Sutram Part 05
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहारसूत्रम् नवम
उद्देशकः १४७७ (A)
तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिण्डं साहणिय अन्तो पडिग्गहंसि उवइत्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ॥ ४३ ॥
संखादत्तियस्स णं भिक्खस्स पाणिपडिग्गहियस्स गाहावइकलं पिण्डवाय-पडियाए अणुपविट्ठस्स
जावइयं-जावइयं केइ अन्तो पाणिंसि उवइत्ता, दलएजा तावइयाओ ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया ।
तत्थ से केइ छब्बएण वा, दूसएण वा, वालएण वा अन्तो पाणिंसि उवइत्ता | दलएजा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ।
तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं सयं पिण्डं साहणिय अन्तो पाणिंसि उवइत्ता दलज्जा सव्वा विणं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ॥४४॥
सूत्र ४३-४४
गाथा ३७८५-३७८९
दत्ति
स्वरूपादिः
|१४७७ (A)
"संखादत्तियस्स ण''मित्यादिसूत्रद्वयम् । अस्य सम्बन्धमाह
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